Monday, May 20, 2024
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Rajya Sabha Cross Voting: 26 साल पहले वो क्रॉस वोटिंग, जिसमें टूट गई थी कांग्रेस

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India News (इंडिया न्यूज़),Rajya Sabha Cross Voting: हिमाचल प्रदेश के राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस को फिर हार का सामना करना पड़ा।कांग्रेस के छह विधायकों ने बीजेपी के उम्मीदवार हर्ष महाजन को क्रॉस वोटिंग कर जितवा दिया। राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग आम बात है। इतिहास गवाह है कि समय-समय पर इस तरह की क्रॉस वोटिंग होती रही। ऐसा ही एक मामला 1998 के राज्यसभा चुनाव में भी हुआ था। उस वक्त जब 1998 के राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था। उस वक्त 1998 के राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस का उम्मीदवार अपनी ही पार्टी के विधायकों की क्रॉस वोटिंग की वजह से हार का सामना करना पड़ा था। जिसके बाद शरद पवार ने कांग्रेस से अलग होकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की स्थापना की थी।

क्या हुआ था सन 1998 के चुनाव में?

दरअसल कांग्रेस ने 1998 के महाराष्ट्र राज्यसभा चुनाव में नजमा हेपतुल्ला और राम प्रधान को उम्मीदवार बनाया था। विधानसभा में पार्टी ये दोनों सीटें आसानी से जीत सकती थी। बीजेपी ने प्रमोद महाजन जबकि शिवसेना ने सतीश प्रधान और प्रीतीश नंदी को उम्मीदवार बनाया था। इसके अलावा दो निर्दलीय उम्मीदवार सुरेश कलमाड़ी और विजय दर्डा भी चुनावी मैदान में थे। जिसमे कांग्रेस के राम प्रधान को हार का सामना करना पड़ा था। जबकि कलमाड़ी और दर्डा सहित अन्य ने जीत का परचम लहराया था। जिसके बाद कांग्रेस की पार्टी में हलचल पैदा हो गई थी और कांग्रेस के एक वर्ग ने राम प्रधान की हार के लिए शरद पवार को दोषी ठहराया था।

पार्टी के इस वर्ग ने कहा कि, पवार राज्यसभा चुनाव में राम प्रधान की उम्मीदवारी के विरोध में थे। इस मामले में पार्टी ने 10 विधायकों और प्रफुल्ल पटेल सहित शरद पवार के सहयोगियों को कारण बताओ नोटिस भेजा था।

एनसीपी के गठन की एक वजह ये भी

1998 के राज्यसभा चुनाव के बाद शरद पवार पार्टी के अंदर ही फस कर रह गए थे। इसके बाद शरद पवार ने कांग्रेस से अलग होने का फैसला लिया था। 1999 के लोकसभा चुनाव में सोनिया गांधी को पीएम पद का उम्मीदवार बनाने की बात चल पड़ी।इसके बाद शरद पवार, तारिक अनवर और पीए संगमा ने बगावत कर दी। तीनों ने सोनिया गांधी के ‘विदेशी मूल’ का होने पर कई सवाल किए थे। उनका कहना था कि एक विदेशी मूल को पीएम नहीं बनाया जा सकता।

जिसके बाद सोनिया गांधी के खिलाफ बगावत ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी यानी एनसीपी की नींव रखी थी। जिसके बाद शरद पवार ने तारिक अनवर और पीए संगमा के साथ मिलकर एनसीपी का गठन किया था। 10 जून 1999 को एनसीपी का गठन किया था। पार्टी ने राज्य की 288 सीटों में से 223 पर अपने उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे थे। चुनाव में किसी एक पार्टी को बहुमत नहीं मिला था। उस वक्त कांग्रेस ने 75 सीटों पर जीत हासिल की थी और सबसे बड़ी जीत हासिल की थी।

20 साल बाद शरद पवार का खुलासा

2018 में एक इंटरव्यू के दौरान शरद पवार ने इसका खुलासा किया कि, उन्होंने कांग्रेस इसलिए छोड़ी थी क्योंकि 1999 में सोनिया गांधी पीएम बनना चाहती थीं। लेकिन उस समय वो मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद के लिए सही उम्मीदवार मानते थे

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