इंडिया न्यूज, केलांग (लाहौल-स्पीति), (With Death Of Colonel Prem Chand) : कर्नल प्रेम चंद के निधन से देश में पर्वतारोहण के एक युग का अंत हो गया। भारतीय सेना ने पहाड़ों को नापने की उनकी हिम्मत और जुनून को देखते हुए उन्हें स्नो टाइगर के नाम से अलंकृत किया था। देश के सर्वश्रेष्ठ पर्वतारोहियों में से एक – एचओएसी (हिमालयन आउटडोर एडवेंचर अकादमी) के संस्थापक कर्नल प्रेम चंद (सेवानिवृत्त) केसी, एसएम, वीएसएम, को पर्वतारोहण हलकों में प्यार से ‘द स्नो टाइगर’ के रूप में भी जाना जाता था।
कर्नल प्रेम चंद का निधन मंगलवार रात को कुल्लू में हो गया। वह गत कुछ समय से बीमार चल रहे थे। वह देश की सबसे ऊंची चोटी कंचनजंगा को फतेह करने वाले पहले भारतीय थे। दुनिया में सबसे पहले इस चोटी का फतेह कर्नल प्रेमचंद ने ही किया था। लाहौल के लिंडूर गांव के निवासी कर्नल प्रेमचंद जनजातीय संस्कृति और परंपराओं के अग्रणी पक्षधर थे। प्रेम चंद ने अपने जीवन की बहुत छोटी उम्र से ही पहाड़ों पर चढ़ना शुरू कर दिया था।
उन्होंने भारतीय सेना में अपने करियर के दौरान भूटान, सिक्किम, नेपाल, गढ़वाल, कश्मीर और पूर्वी काराकोरम की कुछ सबसे ऊंची चोटियों को सफलतापूर्वक फतेह किया था। वे 1977 में सबसे मुश्किल मार्ग-द नॉर्थ ईस्ट स्पर से भारत की सबसे ऊंची चोटी-कंचनजंगा के शिखर पर पहुंचने वाले दुनिया के पहले भारतीय थे।
यह चढ़ाई अपने समय की सबसे तेज चढ़ाई में से एक मानी जाती है। माउंट एवरेस्ट पर 1953 के सफल ब्रिटिश अभियान के नेता लॉर्ड हेनरी हंट ने बाद में प्रेम चंद की उपलब्धि को एवरेस्ट की विजय से कहीं अधिक बड़ा बताया था। क्योंकि इसमें तकनीकी चढ़ाई और पाए गए लोगों की तुलना में बहुत अधिक उच्च स्तर के उद्देश्य संबंधी खतरे शामिल थे।
कंचनजंगा की विजय को इतनी बड़ी उपलब्धि माना गया कि कर्नल प्रेम को भारतीय पर्वतारोहण महासंघ (आईएमएफ) द्वारा भारत में पर्वतारोहण में निरंतर उत्कृष्टता के लिए स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया। कर्नल प्रेमचंद दो बार माउंट एवरेस्ट पर जा चुके हैं और 1984 में पहली भारतीय महिला सुश्री बछेंद्री पाल को माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने की तकनीकी प्रशिक्षण दिया। उन्होंने अपने पूरे करियर के दौरान लगभग 30 चोटियों पर चढ़ाई कर इतिहास रच दिया है। कर्नल प्रेम को 1972 के शीतकालीन ओलंपिक के लिए भारतीय स्की टीम का नेतृत्व करने के लिए भी चुना गया था।
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