इंडिया न्यूज, मंडी, (From Tissue Engineering) : टिश्यू इंजीनियरिंग से की जाएगी मानव अंगों की मरम्मत। इसके लिए केंद्र सरकार वृहद स्तर पर प्रयास शुरू कर दी है। इस तकनीक के पूर्ण रूप से विकसीत हो जाने पर रोगियों के अंगों को ट्रांसप्लांट की जरूरत नहीं पड़ेगी।
मरीज के अंगों को ही टिश्यू इंजीनियरिंग की मदद से ठीक कर प्रत्यारोपित किया जाएगा। यह रोगी के शरीर से कोशिकाओं का उपयोग कर घावों और उत्तक क्षति को बहाल करने में मदद करता है। कोशिकाओं को शरीर के बाहर एक उत्तक के रूप में विकसित किया जाता है और रोगी को वापस प्रत्यारोपित कर दिया जाता है।
कोशिकाएं रोगी के होने के कारण इसकी अस्वीकृति की समस्या कभी नहीं होती है। अंगों के खराब हो जाने पर उस अंग के लिए किसी डोनर का इंतजार भी नहीं करना पड़ेगा। इस इंजीनियरिंग से मानव के उस अंग को दोबारा ठीक करने का प्रयास किया जाता है। इस मामले में दिल्ली आईआईटी के वैज्ञानिक डॉ. भुवनेश ने हाल ही में सरदार पटेल यूनिवर्सिटी (एसपीयू) मंडी में साइंस कॉन्फ्रेंस में इस बात का खुलासा किया हैं। उन्होंने बताया कि भारत में यह प्रयोग रिसर्च स्तर पर है। जल्द ही इसे शुरू किया जाएगा। इसके लिए वैज्ञानिकों ने कार्य तेज कर दिया है।
टिश्यू इंजीनियरिंग से वैज्ञानिकों ने मूत्राशय के पुनर्निर्माण करने में सफलता पाई है। डॉ. भुवनेश ने बताया कि स्विट्जरलैंड के दो वैज्ञानिकों, प्रो. जे हिलबोर्न के साथ उन्होंने काम किया और एक रोगी के खराब मूत्राशय का पुनर्निर्माण किया और यह प्रयास पूरी तरह सफल रहा। उन्होंने प्रो. अमलान गुप्ता, सिक्किम मणिपाल मेडिकल इंस्टीट्यूट गंगटोक के साथ काम किया, जहां त्वचा पुनर्जनन के लिए हमने प्रयोग किए। इसके लिए हमने मेजबान से ली गई कोशिकाओं से जीवित त्वचा बना डाली।
आज के हालातों में बीमारियों ने जिस तरह लोगों को जकड़ रखा है, ऐसे में मरीजों के अंगों को अगर दोबारा से ठीक किया जा सकेगा तो इससे मरीजों को काफी लाभ होगा। टिश्यू इंजीनियरिंग बड़ी संख्या में मानव अंगों की मरम्मत के लिए संभावना देती है। अस्थि निर्माण, त्वचा निर्माण को इसमें अधिक महत्व दिया जा रहा है। आने वाले समय में मानव स्वास्थ्य देखभाल के लिए यह प्रणाली बहुत कारगर साबित होने वाली है। भारत सरकार इस काम को अंजाम देने के लिए काफी फंड दे रही है।
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