Shaktipeeth in Himachal Pradesh: हिमाचल प्रदेश को देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है। प्रदेश में कई शक्तिपीठ भी हैं, जिनमें श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। नवरात्रि में इन शक्तिपीठों में दर्शन के लिए में श्रद्धालुओं की लंबी भीड़ देखी जा सकती है। आइए जानते हैं हिमाचल में स्थित शक्तिपीठ कौन-कौन से हैं।
हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा में स्थित चामुंडा देवी मंदिर श्रद्धालुओं के लिए महत्वपूर्ण मंदिर माना जाता है। यह मंदिर बनेर नदी के किनारे स्थित है जो 700 साल पूराना है। ये मंदिर 51 सिद्ध शक्तिपीठों में से एक है जिसके कारण इसका विशेष महत्व है। यह मंदिर हिंदू देवी चामुंडा को समर्पित है। चामुंडा को देवी दुर्गा के नाम से भी जाना जाता है। चामुंडा मां ने यहां चंड और मुंड नामक दो असुरों का संहार किया था। यहां एक गुफा के अंदर भगवान शिव भी नंदीकेश्वर के नाम से विराजमान हैं। ऐसे में इस स्थान को चामुंडा नंदीकेशवर धाम के नाम से भी जाना जाता है।
ज्वालामुखी मंदिर कांगड़ा जिले में स्थित में है। जो कांगड़ा शहर के दक्षिण में 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर हिंदू देवी ज्वालामुखी को समर्पित है। इनके मुख से अग्नि का प्रवाह होता रहता है। इस मंदिर में अग्नि की छह लपटें हैं। जो अलग अलग देवियों को समर्पित हैं जैसे महाकाली अन्नपूरना, चंडी, हिंगलाज, बिंध्यवासिनी, महालक्ष्मी सरस्वती, अम्बिका और अंजी देवी। पौराणिक मान्यताओं की माने तो यहां पर देवी सती की जीभ गिरी थी।
नैना देवी माता मंदिर हिमाचल प्रदेश के जिला बिलासपुर में स्थित है। इस स्थान पर माता सती के दोनों नेत्र गिरे थे। नैना देवी का मंदिर भी शक्तिपीठों में प्रमुख माना जाता है। नैना देवी मंदिर पंजाब की सीमा के समीप है। मंदिर में माता भगवती नैना देवी के दर्शन पिंडी के रूप में होते हैं।
कांगड़ा का बज्रेश्वरी देवी शक्तिपीठ कांगड़ा में स्थित है जिसे नगरकोट धाम भी कहा जाता है। यह शक्तिपीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है। यहां मां सती का दाहिना वक्ष गिरा था। इस धाम में मां की पिंडियां भी तीन ही हैं। मंदिर के गर्भगृह स्थित पहली और मुख्य पिंडी मां बज्रेश्वरी की है। दूसरी पिंडी मां भद्रकाली और तीसरी और सबसे छोटी पिंडी मां एकादशी की है। माता के इस शक्तिपीठ में उनके परम भक्त ध्यानु ने अपना शीश अर्पित किया था।
चिंतपूर्णी धाम हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले में स्थित है। यह धाम 51 शक्ति पीठों में से एक है। चिंतापूर्णी धाम पर माता सती के चरण गिरे थे। एक बार ही चिंतपूर्णी देवी का दर्शन करने से चिंताओं से मुक्ति मिलती है, इसे छिन्नमस्तिका देवी भी कहते हैं। श्री मार्कंडेय पुराण में बताया गया है कि जब मां चंडी ने राक्षसों का संहार करके विजय प्राप्त की तो माता की सहायक योगिनियां अजया और विजया की रुधिर पिपासा को शांत करने के लिए अपना मस्तक काटकर, अपने रक्त से उनकी प्यास बुझाई इसलिए माता का नाम छिन्नमस्तिका देवी पड़ गया।
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