Dharm: शिव, महादेव, शम्भू, भोला.. भगवान शंकर के ऐसे ही अनेकों नाम है। भगवान शिव के करोड़ो ही भक्त इस दुनिया में है। गृहस्थ जीवन से लेकर सन्यासी जीवन जीने वाले, हिमालय में रहने वाले साधु से लेकर सिद्धि प्राप्त कर चुके संत सभी भगवान शिव को अपना इष्ट मानते है। जिस तरह भगवान शंकर के नाम है उसी प्रकार उनका रूप भी है। कहा जाता है कि देवताओं में सबसे भोले और बहुत जल्द प्रसन्न होने वाले देवों के देव महादेव शिव है। लेकिन इससे उलट भगवान शिव का क्रोध भी उतना ही विकराल है, इसीलिए शिव को त्रिदेवों में सृष्टि का विनाशक के रुप में जाना जाता है। भगवान शिव ही ऐसे देवता है जिनकी पूजा उनके प्रतीक यानि लिंग, शिवलिंग की करने पर सबसे अधिक महत्व प्राप्त होता है। शिव के प्रतीक शिवलिंग में जल चढ़ाने से मन में शांति और मनोकामना की पूर्ति होती है। शिव के कई भक्त शिवलिंग में कई प्रकार की चीजों को चढ़ाते है, लेकिन कई भक्त अनजाने में शिंवलिंग पर कुछ ऐसी चीजों के चढ़ा देते है, जिन्हें चढ़ाने पर महादेव आपसे क्रोधित हो सकते है और उनके क्रोध की वजह से आपके जीवन में विकट परिस्थिति बन सकती है।
तुलसी- वैसे तो भगवान शिव अपने भक्तों के द्वारा दी गई सभी चीज़ों से प्रसन्न हो जाते है, लेकिन शिवलिंग पर भूल से भी तुलसी को नहीं चढ़ानी चाहिए। कहा जाता है कि शिवलिंग में तुलसी चढ़ाना आपके अकाल मृत्यु का कारण बन सकती है। शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव ने अपने अंश और औषधियों की देवी तुलसी के पति
असुर जालंधर का वध किया था। इसके बाद से तुलसी भगवान शिव से सदैव के लिए रूष्ट हो गई। शिंवलिंग में तुलसी चढ़ाने से तुलसी क्रोधित हो जाती है।
हल्दी- वैसे तो हिंदु धर्म की कोई भी पूजा और शुभ कार्य हल्दी के बिना पुरा नहीं होता है, लेकिन शिवलिंग पर कभी हल्दी नहीं चढ़ानी चाहिए। शास्त्रों के अनुसार शिवलिंग यानि शिव का प्रतीक एक पुरुष तत्व का प्रतिक है वहीं हल्दी स्त्रियों से संबंधित वस्तु है। इसलिए हेल्दी को कभी भी शिवलिंग पर नहीं चढ़ाना चाहिए।
केतकी का फुल- शिवपुराण के अनुसार जब सृष्टी में भगवान विष्णु और ब्रह्मा आए तो कई वर्ष तक दोनों के बीच पहले आने की बहस शुरू हो गई। इसके बाद शिव ने इस बात का निर्णय करने के लिए शिवलिंग के दोनों छोरों के अंत का पता लगाने के लिए कहा। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्मा जी ने केतकी के फूल के द्वारा शिवलिंग के एक छोर के अंत का पता लगाने का दावा किया। इस पर भगवान शिव ने क्रोधित होते हुए केतकी के फूल को कभी शिव की पूजा में शामिल नहीं होने का श्राप दिया।
शंख से जल- शिवपुराण के अनुसार दैत्य शंखचूड़ के अत्याचारों से देवता परेशान थे। भगवान शिव ने उसके अत्याचारों से क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से उसका वध कर दिया। कहा जाता है कि जिसके बाद उसका शरीर भस्म हो गया और उस भस्म से ही शंख की उत्पत्ति हुई थी। शिवजी ने शंखचूड़ का वध किया इसलिए कभी भी शंख से शिवजी को जल अर्पित नहीं किया जाता है।
कुमकुम या सिंदूर- कुमकम या सिंदूर का प्रयोग विवाहित स्त्रियां करती है। स्त्रियां अपने पति की लंबी उर्म और अच्छे स्वस्थ के लिए सिंदुर को मस्तक में गलाती है। वहीं भगवान शिव त्रि देवों में विनाशक के देवता हैं। यही वजह है कि सिंदूर से भगवान शिव की सेवा करना ठीक नहीं माना जाता है।
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