Dharm: ईश्वर पर ध्यान केंद्रित करते हुए हम सभी को प्रार्थना करनी चाहिए। कुछ लोग ईश्वर को उस समय याद करते है जब वो किसी विपत्ति में फंस जाते है। लेकिन हमें इससे अलग हर रोज ईश्वर की प्रार्थना करनी चाहिए। कबीर दास ने भी इस पर कहा है कि दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करै न कोय। जो सुख में सुमिरन करे, दुःख काहे को होय। वहीं अब इन्ही सुख की प्राप्ती और दुख से छुटकारा पाने के लिए हमें ईश्वर से हर रोज प्रार्थना करनी चाहिए। लेकिन अब हमारे सामने ये बात आती है कि हम प्रार्थना को कैसे और कब कर सकते है और ईश्वर हमारी प्रार्थना को सुनेगें।
वैसे तो ईश्वर से प्रार्थना करने का कोई समय या स्थान नहीं होता है। इस पर कबीर भी कहा करते थे कि “मन चंगा तो कठौती में गंगा”। लेकिन अगर हम अपने योग और ध्यान शास्त्रों की बतों को देखे तो, मालूम होता है कि ईश्वर की पूजा या प्रार्थना हमेशा साफ शरीर से करनी चाहिए। माना जाता है कि साफ शरीर में ही साफ मन वास करता है और साफ मन के साथ ही आप प्रार्थना करते समय ईश्वर से अधिक पवित्रता से जुड़ पाते हैं। वहीं , माना जाता है कि प्रार्थना का विशेष समय प्रातः यानि सुबह का या शाम का होता है। योगियों ने इस पर संकेत दिया है कि सुबह और शाम के समय आपका मन पूरे दिन की तुलना में आधिक शांत रहता है।
प्रार्थना हमेशा एक अच्छे भाव से होनी चाहिए। केवल मंत्रोच्चार से प्राथना करना वह किसी भी प्रार्थना को न करने से बेहतर कहलाता है,लेकिन सच्ची समझ और अंतर आशय (भाव) के साथ पूजा पाठ करने से बेहतर परिणाम मिलते है। प्रार्थना करते समय आपका ध्यान भगवान पर और प्रार्थनाओं पर होना चाहिए। इस बात का ख्याल रखे की हमारा चित्त (ध्यान) इधर-उधर भटके नहीं। निष्ठा और शुद्ध हृदय से कि हुई प्रार्थना आपको सच्चे संयोग से मिलवा देती है। उस तरीके से प्रार्थना करें जिसके परिणामस्वरूप गुह्य, आंतरिक शांति प्राप्त हो सके।
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