India News (इंडिया न्यूज़), HP High Court, Himachal: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एनएचएआई अधिनियम के तहत भूमि के मुआवजा निर्धारण में हो रही देरी को गंभीरता से लिया है। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान ने कहा कि मंडलायुक्तों पर अत्यधिक बोझ होने के कारण मध्यस्थ को बदलने की जरूरत है। अदालत ने मध्यस्थ बदलने पर विचार करने के लिए एनएचएआई और केंद्र सरकार को आदेश दिए हैं।
अदालत ने अपने आदेशों की अनुपालना के लिए 22 सितंबर तक रिपोर्ट तलब की है। अदालत ने अपने निर्णय में कहा कि केंद्र सरकार ने मंडलायुक्त शिमला और मंडी को मुआवजा निर्धारण के लिए मध्यस्थ नियुक्त किया है। दोनों ही मंडलायुक्तों से एनएचएआई अधिनियम के तहत मामलों का निपटारा नहीं हो रहा है।
अदालत ने कहा कि यदि सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीशों या अतिरिक्त जिला न्यायाधीशों को मुआवजा निर्धारण की शक्तियां प्रदान की जाती हैं तो यह उपयुक्त होगा। अदालत को बताया गया कि मंडलायुक्त शिमला के समक्ष 869 और मंडी के समक्ष 2660 मामले लंबित हैं। इनमें से कुछ एक तो वर्ष 2015 से लंबित हैं।
केंद्र सरकार द्वारा 22 मार्च 2012 को जारी किए गए आदेशों के चलते राजस्व जिलों शिमला तथा सोलन के लिए मंडलायुक्त शिमला और बिलासपुर, मंडी एवं कुल्लू के राजस्व जिलों के लिए मंडलायुक्त मंडी को मध्यस्थ नियुक्त किया गया था। याचिकाकर्ताओं की ओर से अदालत के ध्यान में यह भी लाया गया कि मंडलायुक्त शिमला और मंडी नियमित प्रशासनिक कार्यों के अलावा राजस्व मामलों के बोझ से दबे हुए हैं।
उनके पास भूमि के मुआवजा निर्धारण से संबंधित मामलों पर निर्णय लेने के लिए समय नहीं है। अदालत ने पाया कि ऐसी परिस्थितियों में दावेदारों और उनके वकीलों को इधर-उधर दौड़ना पड़ता है और प्राधिकारी के निर्णय के लिए काफी समय तक इंतजार करना पड़ता है। जब निर्णय नहीं दिया जाता है, तो असहाय दावेदारों के पास अदालत का दरवाजा खटखटाने के सिवा कोई विकल्प नहीं है, वहीं अदालतों के सामने मुकदमों को रखता है।
न्यायालय का कहना है कि इस बेहद गंभीर मामले पर एनएचएआई और केंद्र सरकार की ओर से विचार-विमर्श करने की आवश्यकता है। अदालत ने मध्यस्थ की ओर से लंबित मामलों का निपटारा करने के लिए समय बढ़ाने के आवेदन पर यह आदेश पारित दिए। अदालत ने याचिकाओं में मध्यस्थता की कार्यवाही पूरी करने के लिए 28 फरवरी 2024 तक का समय दिया है।
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