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Climate Clock: पर्यावरण के बचाव के लिए है 6 साल का समय, शिमला के स्कूल में लगी क्लाइमेट क्लॉक ने दी जाानकारी

• LAST UPDATED : December 7, 2023

India News(इंडिया न्यूज़), Climate Clock: हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले में क्रीसेंट स्कूल प्रदेश की पहली जलवायु गाड़ी स्थापित की गई। यह घड़ी आपको समय नाम बता कर आपके आसपास के पर्यावरण बचाने के लिए कितना समय है उसकी जानकारी देती है। इस घड़ी में पर्यावरण बचाओ उसके लिए 5 साल 301 दिन 18 घंटे 3 मिनट और 16 सेकंड दर्शाए जा रहे हैं। घड़ी में ग्लोबल तापमान सामान्य से 1.19 डिग्री सेल्सियस ज्यादा है। 5 साल बाद यह तापमान 1.50 डिग्री सेल्सियस तक जा सकता है। इन्हालातों में मौसम और वर्तनी हो जाएगा। इन हालात में जाता हूं लगातार सुख रहेगा या फिर अधिक बारिश के कारण बाढ़ या तूफान आ सकते हैं। 2.0 डिग्री सेल्सियस तापमान पहुंचने के बाद यह स्थिति हमारे हाथों से निकल जाएगी।

इसके बाद कितने में पर्यावरण संरक्षण कर लिए जाए जलवायु परिवर्तन में कोई सुधार नहीं आएगा। वही स्कूल में यह घड़ी बच्चों को डराने के लिए नहीं परंतु उन्हें हालातो से सावधान करने एवं पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए लगाई गई है।

एनआईटी हमीरपुर के विज्ञान भारती के अध्यक्ष डॉ. अश्विनी राणा किस जगह के अनुसार इस घड़ी को स्कूल के गेट पर लगाया गया है। क्रीसेंट स्कूल के प्रधानाचार्य सुभाष चंद का कहना है क्यों क्लाइमेट क्लॉक लगाने के बाद बच्चों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ रही है। केवल इतना ही नहीं पर वे बच्चे अपने आसपास के लोगों को भी इस बारे में जागरूक कर रहे हैं। उनका कहना है कि जलवायु घड़ी हमें पर्यावरण को बचाने के लिए हमारे पास कितना समय है उसकी जानकारी देती है। जब वैश्विक तापमान सामान्य से 2.0 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला जाएगा तब धरती के जलवायु और परिवर्तिनिय हो जाएगी। क्लाइमेट क्लॉक यह दिखाती है कि कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन स्पीड से होता था और आज वर्तमान में किस स्पीड पर हो रहा है।

1 सेकंड में 14 लाख कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ी जा रही है

वैज्ञानिकों का कहना है कि हम एक सेकंड में 14 लाख किलो की कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते हैं। करीबन 280 बिलीयन टन और छोड़ सकते हैं। यह मार्जिन हमारे पास है। जिस गति से हम कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ रहे हैं उसके मुताबिक 5 साल का समय ही बचा है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक हम अपनी जरूरतों को तय कर 100% सोलर ऊर्जा पर जाना पड़ेगा। अभी पर्यावरण को संतुलित करना बहुत जरूरी है और हमारे पास इसका समय भी है।

 

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