इंडिया न्यूज, पालमपुर।
इस अवसर पर उन्होने कहा कि कम अवधि और जलवायु अनुकूल दलहन किस्मों को विकसित करने के लिए काम प्रगति पर है। उन्होंने कहा कि दालों में 24 प्रतिशत तक उच्च प्रोटीन सामग्री होती है, लेकिन वैज्ञानिकों को इस सामग्री में और सुधार करने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि पिछले आठ वर्षों में नीतिगत समर्थन और उचित विपणन से दलहन (Pulses) उत्पादन (Production) 16 मिलियन टन से बढ़कर 27 मिलियन टन हो गया है और देश में दलहन क्रांति जारी है। उन्होंने कीट प्रतिरोधी किस्मों के विकास, श्रम लागत को कम करने के लिए यांत्रिक कटाई, दलहन के तहत क्षेत्र में बीस प्रतिशत की वृद्धि, कटाई के बाद के नुकसान को कम करने, संसाधन संरक्षण, कुशल विस्तार मॉडल आदि पर चर्चा की। उन्होंने वैज्ञानिकों से किसी भी किस्म को पूर्ण उत्पाद के रूप में सभी महत्वपूर्ण लक्षण विकसित करने के लिए कहा। उन्होंने एक गतिशील मोड में प्रमुख फसलों पर अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए आईसीएआर के प्रयासों के बारे में भी बताया। देश में रिकार्ड खाद्यान्न उत्पादन के कारण महामारी में 80 करोड़ लोगों को मुफ्त भोजन दिया गया।
इस अवसर पर कुलपति (Vice Chancellor) डॉ0 एच0 के0 चैधरी ने बताया कि राज्य कई दालों का घर है और विश्वविद्यालय कुछ पारंपरिक दालों जैसे राजमाश (Kidney beans), कुलथी (kulthi), उड़द (Black gram) आदि को जीआई टैग (GI) प्राप्त करने के लिए काम कर रहा है। उन्होंने जैव संसाधनों की विविधता व पहाड़ों की विविधता का वर्णन किया।
उन्होंने पहाड़ी क्षेत्रों में पर्याप्त संख्या में दलहनी किस्मों (Types of Pulses) की जानकारी दी और बीज ग्राम अवधारणा के माध्यम से कृषक समुदाय के बीच लोकप्रिय बनाने का सुझाव दिया। अच्छी कीमत प्राप्त करने के अलावा, किसान परिवारों की पोषण सुरक्षा के लिए दलहन महत्वपूर्ण हैं। प्रोफेसर चैधरी ने दालों के प्रजनक बीज उत्पादन को गुणा करने की सलाह देते हुए कम सुलभ क्षेत्रों में, विपणन नेटवर्क को मजबूत करने को कहा। उन्होंने कहा कि अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना प्रणाली कई फसलों में अत्यधिक उत्पादक में सहायक रही है।
सहायक महानिदेशक, भाकृअनुप (Indian Council of Agricultural Research) डॉ0 संजीव गुप्ता ने देश में दलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों का विवरण दिया। भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान, कानपुर के निदेशक डॉ बंसा सिंह ने मूंग (split and skinned green gram), उड़द (black gram), दाल , मटरी (लैथिरस – lathyrus sativus), राजमाश (Rajmash), मटर (Peas), अरहर (Pigeon Pea) और सूखी फलियों पर विस्तृत शोध कार्य को सामने रखा।
परियोजना समन्वयक, अरहर (Pigeon Pea) डॉ0 आई0 पी0 सिंह, अखिल भारतीय समन्वयक अनुसंधान परियोजना के परियोजना समन्वयक, (शुष्क फलिया) डॉ0 फरिंद्र सिंह, अनुसंधान निदेशक डॉ0 एस0 पी0 दीक्षित, वरिष्ठ वैज्ञानी डा0 जे0 डी0 शर्मा व आयोजन सचिव डॉ0 सुमन कुमार ने भी दलहन पर अनुसंधान और विकास कार्यों पर अपनी बात को रखा।