इंडिया न्यूज, शिमला :
CITU Upset When Cases Were Registered Against Employees : माकपा के कामगार संगठन सीटू की राज्य कमेटी ने प्रदेश सरकार द्वारा कर्मचारियों पर एफआईआर दर्ज करने, उनके तबादले करने व अन्य सभी प्रकार के उत्पीड़न की कड़ी निंदा करते हुए इसे तानाशाही करार दिया है।
सीटू ने चेताया है कि अगर कर्मचारियों के उत्पीड़न पर रोक न लगी तो प्रदेश के मजदूर व कर्मचारी सड़कों पर उतरकर सरकार के खिलाफ मोर्चाबंदी करेंगे।
सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा व महासचिव प्रेम गौतम ने मुख्यमंत्री के कर्मचारी विरोधी बयानों, अधिसूचनाओं व कर्मचारियों के तबादलों की कड़ी निंदा की है।
उन्होंने कर्मचारियों के खिलाफ मुख्यमंत्री के बयानों, तबादलों व अन्य तरह की बदले की भावना की कार्रवाई को बेहद दुर्भाग्यपूर्ण बताया है व इसे लोकतंत्र विरोधी करार दिया।
उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री अपने पद की गरिमा का ध्यान रखें व तानाशाही रवैया न दिखाएं। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री व सरकार अपनी नालायकी को छिपाने व नवउदारवादी नीतियों को कर्मचारियों व आम जनता पर जबरन थोपने के उद्देश्य से ही तानाशाहीपूर्वक रवैया अपना रहे हैं तथा ऊल-जलूल बयानबाजी व बदले की भावना की कार्रवाई कर रहे हैं।
उन्होंने मुख्यमंत्री को याद दिलाया कि वर्ष 1992 में इसी तरीके की कर्मचारी विरोधी बयानबाजी, वेतन कटौती, तबादले व अन्य तरह का उत्पीड़न तत्कालीन मुख्यमंत्री शांता कुमार ने किया था।
उन्होंने कर्मचारियों पर तानाशाही ‘नो वर्क-नो पे’ लादा था। उस सरकार का हश्र सबको मालूम है। उस सरकार से खफा होकर प्रदेश के हजारों कर्मचारियों के साथ ही मजदूर वर्ग हजारों की तादाद में सड़कों पर उतर गया था व शांता कुमार सरकार को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया था।
इस ऐतिहासिक कर्मचारी आंदोलन के बाद शांता कुमार दोबारा शिमला में मुख्यमंत्री के रूप में कभी वापसी नहीं कर पाए। सीटू नेताओं ने कहा कि मुख्यमंत्री प्रदेश के कर्मचारियों पर अनाप-शनाप बयानबाजी, तबादले व अन्य प्रताड़नापूर्ण कार्रवाइयां कर रहे हैं।
वे पुरानी पेंशन बहाली की मांग, छठे वेतन आयोग की विसंगतियों को दूर करने और आउटसोर्स कर्मियों के लिए नीति बनाने की बात की खिल्ली उड़ा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री कर्मचारियों की पेंशन बहाली की बजाय कर्मचारियों से चुनाव लड़कर विधायक और सांसद बनकर पेंशन हासिल करने की संवेदनहीन बात कह रहे हैं।
मुख्यमंत्री व उनके प्रशासनिक अधिकारियों को मालूम होना चाहिए कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 आम जनता व कर्मचारियों को अपने अधिकारों के लिए एकजुट होने, यूनियन अथवा एसोसिएशन बनाने, भाषण देने, रैली, धरना, प्रदर्शन और हड़ताल करने का अधिकार देता है।
ऐसे में कर्मचारियों के जनवादी आंदोलन को दबाना व उन्हें प्रताड़ित करना भारतीय संविधान की अवहेलना है। सीटू नेताओं ने कहा कि मुख्यमंत्री की तनाशाहीपूर्वक कार्रवाइयां देश में इमरजेंसी के दिनों की याद दिला रही हैं, जब लोकतंत्र का गला पूरी तरह घोंट दिया गया था।
उन्होंने प्रदेश सरकार से मांग की कि वह सरकारी कर्मचारियों की वेतन आयोग संबंधी शिकायतों का तुरंत निपटारा करें। ओल्ड पेंशन स्कीम बहाल करें। साथ ही कांट्रैक्ट व्यवस्था पर पूर्ण रोक लगाएं।
उन्होंने कहा कि आउटसोर्स, ठेका प्रथा, एसएमसी, कैजुअल, पार्ट टाइम, टेम्परेरी, योजना कर्मी, मल्टी टास्क वर्कर आदि कर्मियों के लिए कच्चे किस्म के रोजगार की बजाय उनके लिए नीति बनाकर उन्हें नियमित रोजगार दे। CITU Upset When Cases Were Registered Against Employees
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