Dharma: एक संवैधानिक अनुशासन की प्रतिबद्धता, जो कर्तव्य भी समझाएं

India News (इंडिया न्यूज़), Dharma: मानवता के इतिहास और सभ्यता का एक अभिन्न अंग है। विश्व भर में विभिन्न धर्मों की विविधता व उच्चता के साथ, यह मानव समाज के विकास और एकता को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हिन्दी में धर्म को ‘धर्म’ या ‘मत’ कहा जाता है, जिसमें एक संवैधानिक अनुशासन और आचार्यों के दिए गए सिद्धांतों का पालन किया जाता है। इस लेख में, हम धर्म के इस महत्वपूर्ण अंग को गहराई से समझने का प्रयास करेंगे।

कर्तव्य को समझाता है

धर्म का मूल अर्थ है “अनुशासन” और “प्रतिबद्धता”। धर्म समाज में नैतिक मूल्यों, नीति एवं शिष्टाचार की मानदंड व नियमों का संगठित समूह है। धर्म के माध्यम से मनुष्य अपने कर्तव्यों को समझता है और उन्हें निर्धारित संबंधों में निभाता है। धर्म के अंतर्गत अनेक पथ हो सकते हैं, परंतु उन सभी की भावना एक समान रहती है, जो अन्ततः मनुष्य की उन्नति और परम सुख को प्राप्ति की दिशा में मार्गदर्शन करती है।

धर्म के कई प्रकार है

धर्म के सिद्धांत और विशिष्टता धर्मग्रंथों, आचार्यों और धार्मिक अनुष्ठानों में समाहित होती है। हिन्दू धर्म, इस्लाम, बौद्ध धर्म, ख्रिस्तीयता, सिख धर्म, जैन धर्म आदि विभिन्न धर्मों की उपास्य देवियों और देवताओं, धर्म सूत्रों, ग्रंथों और धर्मशास्त्रों के अनुसार अपने-अपने विधान में समाहित होते हैं।

अनुष्ठान धर्म का महत्तवपूर्ण पहलू है

धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है धार्मिक अनुष्ठान, जिसे साधारणत: पूजा-पाठ, प्रार्थना, संध्या वंदना, चरित्र निर्माण, दान-धर्म, सेवा, आत्म-विकास और अन्य सामाजिक एवं नैतिक आचरणों के माध्यम से व्यक्ति अपने आप को परिपूर्ण बनाता है। इसे धर्मिक सम्प्रदायों की शिक्षाएं और संस्कृति के साथ जिए जाने वाला एक मार्ग माना जाता है।

धर्म के विभिन्न पहलू भी समाज के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। धर्म ने सदियों से संस्कृति और भाषा के विकास में योगदान दिया है। सामाजिक न्याय, सामाजिक समरसता, भाईचारा और सभ्य संबंधों को स्थापित करने में धर्म का महत्वपूर्ण योगदान है।

धर्म के कुछ पहलू नेति, अहिंसा, सच्चाई, क्षमा, दया, धैर्य, त्याग, सामर्थ्य, नम्रता, सहनशीलता और आदरभाव जैसी गुणों को विकसित करते हैं, जो व्यक्ति को एक बेहतर और समृद्ध व्यक्तित्व के साथ सम्पन्न करते हैं।

विवाद हो रहा उतपन्न

हालांकि, कुछ समयों से, धर्म को अपने उच्चतम मूल्यों और दर्शनिक सिद्धांतों से भटकते हुए देखा जा रहा है। धार्मिक टोलरेंस और सम्मान के परिप्रेक्ष्य में, कई लोगों के बीच विवाद और द्वेष उत्पन्न हो रहे हैं। इस संदर्भ में, हमें धर्म के सच्चे अर्थ और उसके उद्देश्य को समझने की जरूरत है। धर्म का सही अनुसरण करके ही हम समाज में सद्भाव, एकता, और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं।

आदर्श समाज का हो पाएगा निर्माण

समाप्ति में कहें तो, धर्म संवैधानिक अनुशासन का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है जो मानव समाज के संस्कृति और समृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान देता है। इसे समझने और उसके मूल्यों को अपने जीवन में अंतर्निहित करने से हम एक आदर्श समाज का निर्माण कर सकते हैं।

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Soumya Madaan

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