Himachal pradesh: हिमाचल के पूर्व न्यायाधीश देश के वकीलों की डिग्रियों की जांच करेंगे। प्रदेश के पूर्व न्यायाधीश व सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता को देशभर के वकीलों की डिग्रियां जांचने की जिम्मेदारी दी गई है। न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की अध्यक्षता में 8 सदस्यीय कमेटी गठित की गई है। न्यायमूर्ति गुप्ता के अलावा, समिति में सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, न्यायमूर्ति अरुण टंडन और राजेंद्र मेनन, वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी, मनिंदर सिंह तथा बीसीआई की तरफ से नामित 3 सदस्यों को शामिल किया गया है। यह आदेश भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला की पीठ ने दिया है।
बीसीआई (बार काउंसिल आफ इंडिया) ने 2015 में बीसीआई प्रमाणपत्र और अभ्यास का स्थान नियम 2015 को अधिसूचित किया। अधिवक्ताओं के सत्यापन के लिए बनाए गए इन नियमों को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। बाद में बीसीआई ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष स्थानांतरण याचिका दायर की गई। बीसीआई की याचिका पर सभी हाईकोर्ट के समक्ष कार्यवाही को शीर्ष अदालत में ट्रांसफर कर दिया गया था। बीसीआई ने वकीलों के सत्यापन के लिए एक समिति का गठन किया था, लेकिन विश्वविद्यालयों ने डिग्री प्रमाणपत्रों को सत्यापित करने के लिए शुल्क की मांग की थी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने शुल्क लगाने पर रोक लगा दी थी।
अदालत ने सोमवार को अपने आदेश में कहा कि प्रासंगिक समय में अधिवक्ताओं की संख्या 16 लाख थी लेकिन अब यह 25.70 लाख होने का अनुमान है। अदालत ने कहा कि बीसीआई के जवाब में वकीलों के सत्यापन को दर्शाया गया है। राज्य बार काउंसिलों में नामांकित अधिवक्ताओं को सत्यापन के लिए घोषणापत्र जमा करवाना था। लेकिन बीसीआई के पास सत्यापने के लिए सिर्फ 1.99 लाख घोषणाएं ही प्राप्त हुई थीं। ऐसे लोगों की पहचान की जा रही है जो कानून का अभ्यास करने के योग्य नहीं हैं। अदालत ने कहा कि बिना शैक्षिक योग्यता या डिग्री के वकील होने का दावा करने वाले लोगों को न्यायिक प्रक्रिया में नहीं जाने दिया जा सकता है। वास्तविक वकीलों को डिग्री का सत्यापन कराना जरूरी है।
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