India News (इंडिया न्यूज़), Himachal Pradesh HC: हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने पाया कि किसी बच्चे को छूने का कोई भी कार्य यौन अधिनियमों से बच्चों के संरक्षण, 2012 (POCSO अधिनियम) की धारा 30 के तहत यौन इरादे का अनुमान लगाता है, अन्यथा साबित करने वाले सबूत पेश करने का बोझ आरोपी पर डाल दिया जाता है।
कोर्ट ने POCSO अधिनियम की धारा 8 के तहत आरोपों को रद्द करने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी।
न्यायमूर्ति राकेश कैंथला की खंडपीठ ने कहा, “जहां कोई व्यक्ति किसी बच्चे को छूता है, धारा 30 के तहत यह धारणा है कि यह यौन इरादे से था और इसे साबित करने का भार आरोपी पर है।”
दूसरे प्रतिवादी के रूप में पहचाने जाने वाले मुखबिर ने शिकायत दर्ज कराई कि उसके पोते (पीड़ित) ने याचिकाकर्ता से जुड़ी एक घटना का खुलासा किया। पीड़ित के अनुसार, मार्च 2018 में बद्दी की यात्रा के दौरान याचिकाकर्ता ने उसके निजी अंगों और गर्दन को दबाकर उसके साथ मारपीट की। याचिकाकर्ता ने पीड़ित को घटना का खुलासा करने से रोकते हुए धमकी भी दी।
इसके बाद, एक प्राथमिकी दर्ज की गई, जिसके बाद पुलिस स्टेशन द्वारा जांच की गई। याचिकाकर्ता के खिलाफ यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO अधिनियम) की धारा 8 के तहत आरोप तय किए गए थे। याचिकाकर्ता ने आरोपों को रद्द करने की मांग करते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, यह तर्क देते हुए कि वे अटकलों पर आधारित थे और संज्ञेय अपराध के सबूतों की कमी थी।
अदालत ने पीड़ित के बयान पर गौर किया, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया था कि याचिकाकर्ता ने ऐसे कार्यों के लिए कोई स्पष्टीकरण दिए बिना उसके निजी अंगों और गर्दन को दबाया। स्पष्टीकरण की यह कमी प्रथम दृष्टया यौन इरादे के निष्कर्ष की ओर ले जाती है, जो धारा 30 के तहत अनुमान द्वारा समर्थित है।
कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने POCSO अधिनियम की धारा 8 के तहत याचिकाकर्ता के खिलाफ सही आरोप तय किए हैं। कोर्ट ने कहा, “पुनरीक्षण अदालत संशोधित किए जाने वाले आदेश पर अपील नहीं करती है और केवल प्रक्रिया की वैधता या नियमितता की जांच करती है।”
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