होम / नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भारतीय भाषाओं को मिली पहल सराहनीय

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भारतीय भाषाओं को मिली पहल सराहनीय

• LAST UPDATED : August 23, 2022

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भारतीय भाषाओं को मिली पहल सराहनीय

पूर्व कुलपति प्रो0 कुलदीप चंद अग्निहोत्री को सम्मानित करते हुए इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष।

  • केंद्रीय विवि में इतिहास की विभाग की ओर से आयोजित संगोष्ठी का समापन,
  • पूर्व कुलपति प्रो0 कुलदीप चंद अग्निहोत्री रहे मौजूद।

इंडिया न्यूज, धर्मशाला(Dharamshala-Himachal Pradesh)

हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविधालय के इतिहास विभाग की ओर से दो दिवसीय संगोष्ठी का समापन धौलाधार परिसर-एक के सेमिनार हाल में हुआ। भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के सौजन्य से भारत में ’’स्व’’ जागरण (हिमाचल प्रदेश के विशेष संदर्भ में) विषय पर आयोजित इस संगोष्ठी के समापन अवसर पर विवि के पूर्व कुलपति प्रो0 कुलदीप चंद अग्निहोत्री ने शिरकत की। वहीं इस अवसर पर नेरी शोध संस्थान के संरक्षक डा0 चेतराम नेगी और ओम उपाध्याय निदेशक आईसीएचआर मौजूद रहे।

इस संगोष्ठी का शुभारंभ सोमवार को विवि के कुलपति प्रो0 सत प्रकाश बंसल ने किया था। इस संगोष्ठी में शोद्यार्थियों एवं विभिन्न राज्यों से आए 20 विद्वानों ने भाग लिया।

दीप प्रज्जवलन के साथ आरंभ हुए इस कार्यक्रम की शुरुआत में इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो0 नारायण सिंह राव ने मुख्य वक्ता, मुख्य अतिथि का परिचय करवाया और सभी का स्वागत किया।

आजादी की लड़ाई में हिमाचल का क्या योगदान रहा है?

इसके बाद शोद्यार्थियों एवं विभिन्न राज्यों से आए विद्वानों को संबोधित करते हुए नेरी शोध संस्थान के संरक्षक डा0 चेतराम नेगी ने कहा कि विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग की ओर से ‘स्व’ जागरण विषय पर जो दो दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ उसमें विषय रखा गया कि था आजादी की लड़ाई में हिमाचल का क्या योगदान रहा है? ’’स्व’’ जागरण में हिमाचल देश से लगभग चार हजार सैनिकों ने ’’आजाद हिंद फौज’’ में काम किया। जब हिमाचल की तरफ अंग्रेजों ने कदम बढ़ाया, तो राम सिंह पठानिया ने उनको सीमा के भीतर आने ही नहीं दिया। प्रदेश के किसान, राजा सभी ने अपना योगदान दिया। उन्होंने प्रदेश के क्रांतिवीरों का उल्लेख किया जिन्होंने आजादी की लड़ाई में अपना योगदान दिया।

ओम उपाध्याय निदेशक आईसीएचआर ने कहा कि वास्तव में आजादी की जो लड़ाई थी, उसमें लाखों क्रांतिवीर जब अपने प्राणों की आहुति दे रहे थे तो उनका लक्षय यह नहीं था कि राजनितिक सत्ता का हस्तांतरण नहीं था या केवल अंग्रेजों से सत्ता उनको मिल जाए। उनका उद्देश्य बहुत बड़ा था। उस समय के क्रांतिवीरों का मात्र एक उद्देश्य था, स्व की पुर्नस्थापना।

अपनी भाषा-संस्कृति पर गर्व होना चाहिए था-डा0 चेतराम नेगी 

हमारे देश का जो मूल है उनके आधार पर देश को विश्वगुरू कहा गया, उसे हम और उद्विकसित रूप में स्थापित कर सकें। वह अपने धर्म की लड़ाई लड़ रहे थे। वह अपनी संस्कृति की लड़ाई लड़ रहे थे। हमारी अपनी शिक्षा, राजनीतिक व्यवस्था, न्यायव्यवस्था सब कुछ भारतीय हो इसके लिए वह लड़ रहे थे। आजादी के बाद हमने दो तरह की विपरीत हालात हमने झेले। एक तो भारत का विभाजन यह आजादी की लड़ाई लड़ने वाले किसी भी क्रांतिवीर का सपना नहीं था। इतनी बड़ी त्रासदी जिसमें डेढ़ करोड़ लोग विस्थापित हो जाएंगे, लाखों बेघर हो जाएंगे। जिस उद्देशय को लेकर हम लड़े वो उद्देश्य पिछड़ गया। हमें जिस तरह से अपनी भाषा-संस्कृति पर गर्व होना चाहिए था उसकी तरफ हम आगे नहीं बढ़ पाए। अब इसी के लिए भारत के प्रधानमंत्री प्रयास कर रहे हैं। अमृत महोत्सव के माध्यम से उस स्व की प्राप्त करें।

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति आई है उसमें इस बात पर जोर दिया गया है कि भारतीय भाषाओं में शिक्षा उपलब्ध करवाई जाए

प्रो0 कुलदीप चंद अग्निहोत्री ने इस अवसर पर कहा कि पूरे भारत में आजादी का अमृत महोत्सव के नाम से कार्यक्रम हो रहे हैं। उन्होंने विवि के इतिहास विभाग को इस तरह के विषय पर संगोष्ठी के आयोजन के लिए बधाई दी और विवि के कुलपति को इस तरह के आयोजनों का श्रेय दिया। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के पश्चात क्या हमने भारत की मूल पहचान को सुरक्षित रखने का प्रयास किया है या नहीं किया है। इस तरह का अनुभव किया जा रहा है कि पिछले सौ सालों से पश्चिमी प्रभाव के कारण उसी को हम बार-बार दोहराते आ रहे हैं। भारत में जो नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति आई है उसमें इस बात पर जोर दिया गया है कि भारतीय भाषाओं में शिक्षा उपलब्ध करवाई जाए और भारत का जो सही इतिहास है उसे लिखा जाए। पूरे उत्तर भारत का समग्र इतिहास पढ़ाया जाए। भारतीय प्रतीकों को फिर से स्थापित किया जाए। भारतीय संस्कृति के जो मूल तत्तव हैं जो मूल चेतना है उसे पुर्नस्थापित किया जाए। उसमें से जो लाभदायक बातें होंगी उनका संरक्षण होगा। भारत में यह प्रयोग हो रहा है और विवि के इतिहास विभाग ने यह जो पहल की है वह सराहनीय है।

मंच का संचालन डा0 चंद्रदीप कंवर ने किया।

SHARE
mail logo

Subscribe to receive the day's headlines from India News straight in your inbox