India News Himachal ( इंडिया न्यूज ),JAIRAM THAKUR: नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने शिमला से जारी बयान में कहा कि सुक्खू सरकार ने मार्केटिंग बोर्ड के डिजिटलाइजेशन टेंडर को रद्द किया है, जिससे साफ है कि यहां घोटाला हुआ है, लेकिन विपक्ष द्वारा आवाज उठाने के बाद सरकार पीछे हट गई है। सरकार टेंडर रद्द करने का कारण जीएसटी की अतिरिक्त मांग भी बता रही है, जबकि टेंडर अवार्ड होने के अगले ही दिन बोर्ड ने फॉर्म के माध्यम से जीएसटी अलग से देने की मांग भी मान ली थी।
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पूर्व सीएम ने कहा कि वित्तीय अनियमितताओं और नियमों की अनदेखी कर अपने चहेतों को लाभ पहुंचाने के लिए किए गए टेंडर को रद्द करना ही था, लेकिन टेंडर रद्द करने की आड़ में सरकार घोटाले में शामिल लोगों को बचाने का प्रयास कर रही है। प्रदेश की जनता मुख्यमंत्री से जानना चाहती है कि इस टेंडर में हुई अनियमितताओं में कौन-कौन शामिल हैं? इस टेंडर में अनियमितताएं करने वालों के खिलाफ अब तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई है? पूरे प्रकरण में अनियमितताएं करने वाले लोगों को किसका संरक्षण प्राप्त है? सरकार को भ्रष्टाचार के मामले में जीरो टॉलरेंस की नीति अपनानी होगी और घोटाले में शामिल लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी होगी। सरकार सिर्फ टेंडर रद्द करके घोटालेबाजों को नहीं बचा सकती।
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि मार्केटिंग बोर्ड में 7 करोड़ रुपये का घोटाला अपने आप में अजीब है। मार्केटिंग बोर्ड के एमडी इस टेंडर को दोबारा करने के बारे में बार-बार फाइल पर लिखते रहे और कृषि सचिव और मार्केटिंग बोर्ड के चेयरमैन ने टेंडर दे दिया। हैरानी की बात यह है कि टेंडर देने का फैसला भी टेंडर कमेटी के कई सदस्यों और चेयरमैन की गैरमौजूदगी में हुआ। टेंडर देने की पूरी प्रक्रिया में राज्य सरकार के स्थापित वित्तीय नियमों की अनदेखी की गई।
टेंडर 29 जून 2024 को दिया गया और 1 जुलाई को इस कंपनी ने फिर मार्केटिंग बोर्ड के सामने यह दलील रखी कि उनका जीएसटी अलग से दिया जाए। इसे एक दिन में ही मान भी लिया गया। तीन हफ्ते बाद अब सरकार ने जीएसटी की मांग के बहाने टेंडर ही रद्द कर दिया। ऐसे में सवाल उठता है कि जब जीएसटी अलग से देने की मांग मान ली गई थी तो उसी आधार पर टेंडर रद्द करने की क्या जरूरत थी। मुख्यमंत्री को स्पष्ट करना चाहिए कि तब ये फैसले कौन ले रहा था?
पूर्व सीएम जयराम ठाकुर ने कहा कि सुक्खू सरकार ने स्कूली बच्चों को दी जाने वाली पानी की बोतलों में भी घोटाला किया है। अपने चहेतों को 90 करोड़ रुपये का टेंडर देने के लिए नियमों में काफी बदलाव किए गए। ताकि सरकार की चहेती फर्म को टेंडर मिले। टेंडर जारी होने के बाद सरकार ने टेंडर की सभी शर्तों, बोतल की स्पेसिफिकेशन, साइज और गुणवत्ता में भी भारी बदलाव किए, जिससे बोतल की गुणवत्ता मानकों पर खरी नहीं उतर पाएगी। स्कूली बच्चों को दी जाने वाली पानी की बोतलों पर भी सरकार ने रोक लगा दी। विपक्ष द्वारा सवाल उठाए जाने पर सरकार ने इस परियोजना को स्थगित कर दिया। ऐसे में सवाल यह है कि पानी की बोतलें देने की योजना में टेंडर की शर्तों में बदलाव क्यों और किसके आदेश पर किया गया?
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