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Mothers Day 2023: मां-बेटे का प्रतीक माना जाता है हिमाचल का ये मंदिर, यहां अपनी मां रेणुका से मिलने आते हैं भगवान परशुराम

• LAST UPDATED : May 14, 2023

India news (इंडिया न्यूज़), Mothers Day 2023, हिमाचल प्रदेश: पूरी दुनिया में मां-बेटे का रिश्ता काफी अनमोल जाता है। मां-बेटे के बीच सबसे खूबसूरत, अटूट और प्यारा रिश्ता होता है। इसलिए मां-बेटे के प्यार को जताने के लिए मई माह के दूसरे रविवार को मादर्स डे (Mothers Day) मानाया जाता है। इस दिन लोगों अपनी मां को अलग-अलग तरीके से सेलिब्रेट करते हैं। मां भी अपने बेटे को आशीर्वाद देती हैं। मादर्स डे को पूरी दुनिया में मनाया जाता है।

इस बार 14 मई यानी आज मादर्स को पूरे देश में मनाया जा रहा है। इस खास दिन लोग अपनी मां को अपने अंदाज में सेलिब्रेट कर रहे हैं। इस दिन लोग अपनी मां को स्पेशल गिफ्ट दे रहे हैं तो कोई अपनी मां को शोपिंग कराने के लिए ले जा रहा है। आप भी अपनी मां को इस साल के मादर्स डे पर एक अनोखे धार्मिक स्थल पर ले जा सकते हैं। हिमाचल में एक ऐसा ही मंदिर है जो मां-बेटे के प्रेम का प्रतीक माना जाता है।

हिमाचल में स्थित है मां-बेटे के प्रेम का प्रतीक मंदिर

हिमाचल प्रदेश में रेणुका झील के किनारे रेणुका जी का भव्य मंदिर स्थित है। ये मंदिर मां-बेटे के प्रेम का प्रतीक माना जाता है। यह मंदिर हिमाचल के नाहन से करीब 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर में कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की दशमी से पूर्णिमा तक मेले का आयोजन किया जाता है। यह मेला मां श्री रेणुका के वात्सल्य और पुत्र भगवान परशुराम के बीच प्रेम को दर्शाता है।

जानें मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में

मां रेणुका और भगवान परशुराम के इस मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में आर्यवर्त में हैहय वंशी क्षत्रीय राज किया करते थे और भृगुवंशी ब्राह्मण उनके राज पुरोहित हुआ करते थे। महर्षि जमदग्नि का जन्म इसी भृगुवंश के महर्षि ऋचिक के घर पर हुआ था। जमदग्नि का विवाह इक्ष्वाकु कुल के ऋषि रेणु की कन्या रेणुका के साथ हुआ था।

महर्षि जमदग्नि एक टीले के पास तपस्या किया करते थे। उनके पास एक कामधेनु गाय थी, जिसे उस समय के राजा और ऋषि प्राप्त करना चाहते थे। एक दिन कामधेनु गाय को मांगने अर्जुन नाम के राजा महर्षि जमदग्नि के पास गए, लेकिन महर्षि जमदग्नि ने गाय को देने से मना कर दिया।

महर्षि जमदग्नि ने राजा से कहा कि ये गाय कुबेर की देन है मैं इसे किसी को नहीं दे सकता हूं। इस बात को राजा ने अपना अपमान समझ लिया और सैनिकों द्वारा महर्षि की हत्या करवा दिया। महर्षि की मृत्यु की खबर सुनते ही मां रेणुका शोकवश राम सरोवर में कूद गई। ऐसा कहा जाता है कि राम सरोवर ने मां रेणुका की देह को ढकने का प्रयास की, इसी के चलते सरोवर के आकार में परिवर्तन हो गया और सरोवर स्त्री के देह के समान हो गया। इस लिए इस झील को रेणुका झील के नाम से जाना जाता है। इस झील को सबसे पवित्र माना जाता है।

जब मां रेणुका के झील में कूदने की जानकारी मिलते ही भगवान क्रोधित होकर राजा को युद्ध के लिए ललकारा दिए। युद्ध में भगवान ने परशुराम ने राजा का उसकी सेना समेत वध कर दिया। इसके बाद भगवान परशुराम ने अपनी योगशक्ति से अपने पिता और माता को जीवित कर दिया। ऐसा कहा जाता है कि इस जगह पर भगवान परशुराम अपनी मां रेणुका से हर साल कार्तिक देवोत्थान एकादशी को मिलने आया करते हैं।

इस स्थान पर हर साल मेला लगता है। यह मेला पूरे पांच दिन तक चलता है। इस मंदिर को मां रेणुका के वात्सल्य और पुत्र परशुराम की श्रद्धा का प्रतीक माना जाता है। आप भी इस मंदिर में आने का प्लान कर सकते हैं।

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