India News (इंडिया न्यूज़), Shimla News, Himachal: शिमला में कुत्तों और बंदरों से निपटने के लिए विशेषज्ञों कमेटी का गठन किया गया है। यह जानकारी राज्य सरकार ने हाईकोर्ट को दी है। कमेटी में कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के विशेषज्ञों को सदस्य बनाया है। अदालत ने कमेटी को आदेश दिए हैं कि वह अदालत के समक्ष सुझाव संबंधी रिपोर्ट पेश करे। मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव और न्यायाधीश अजय मोहन गोयल की खंडपीठ ने मामले पर सुनवाई 6 नवंबर को निर्धारित की है। कोर्ट ने नगर निगम से उम्मीद जताते हुए कहा कि शहरवासियों को इस आतंक से छुटकारा दिलाने के लिए जल्द से जल्द कारगर कदम उठाए जाएंगे। अदालत ने निगम और वन विभाग को आदेश दिए हैं कि वे कमेटी के सुझाव पर अमल करे। सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से अदालत को आश्वस्त किया कि विश्वविद्यालय से मिलकर बंदरों के उत्पात को नियंत्रित और कुत्तों के आतंक को दूर करने के हरसंभव प्रयास किए जाएंगे। बता दें कि अमर उजला में प्रकाशित खबर शिमला में बंदरों के हमले में छात्रा की गिरकर मौत पर अदालत ने संज्ञान लिया है। खबर प्रकाशित की गई थी कि शिमला में उत्पाती बंदरों के हमले से एक और जान चली गई। शहर के ढांडा क्षेत्र में बंदरों के हमले के कारण एक युवती अपने घर की तीसरी मंजिल से गिर गई थी।
बता दें कि वर्ष 2011 में भी अमर उजाला ने बंदरों के आतंक को उजागर किया था। प्रकाशित खबर पर हाईकोर्ट ने संज्ञान लिया था। उसके बाद केंद्र सरकार ने हिमाचल सहित तीन राज्यों में नील गाय, बंदर और जंगली सूअर को वर्मिन घोषित किया था। वर्ष 2016 में केंद्र सरकार की इन अधिसूचनाओं को सुप्रीमकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई थी। 11 जुलाई 2016 को हाईकोर्ट ने मामला यह कहकर बंद कर दिया था कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में सुनवाई कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने 20 जून, 2016 को उन अधिसूचनाओं पर रोक लगाने से मना कर दिया, जिसमें कुछ जानवरों को वर्मिन घोषित किया गया था। इसके बाद 15 जुलाई 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने यह मामला बंद कर दिया था। बंदरों को मारने की पहले की अनुमति 4 फरवरी, 2020 को समाप्त हो गई। इस पर राज्य सरकार ने बंदरों को मारने के लिए केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय से अनुमति के नवीनीकरण की मांग नहीं की।