इंडिया न्यूज, शिमला।
Strike on the Call of Central Trade Unions and National Federations : केंद्र सरकार के खिलाफ केंद्रीय ट्रेड यूनियनों व राष्ट्रीय फेडरेशनों के आह्वान पर 2 दिन की हड़ताल के पहले दिन राज्यभर में विभिन्न स्तरों पर धरना-प्रदर्शन हुए।
इस दौरान केंद्रीय कर्मचारियों के संयुक्त समन्वय समिति, बैंक, बीमा, केंद्रीय विभागों समेत अन्य कामगारों ने इस हड़ताल में हिस्सा लिया।
इस हड़ताल में सीटू, इंटक, एटक, बीमा, बैंक, बीएसएनएल, डाक कर्मियों, एजी आफिस, विभिन्न कार्यक्षेत्रों में कार्यरत मजदूरों व केंद्रीय कर्मचारियों ने मजदूरों के कानूनों को खत्म करके 4 लेबर कोड बनाने, सार्वजनिक क्षेत्र के विनिवेश व निजीकरण को लेकर केंद्र सरकार पर हमला बोला।
वहीं, ओल्ड पेंशन स्कीम बहाली, आउटसोर्स नीति बनाने, स्कीम वर्कर्स को नियमित सरकारी कर्मचारी घोषित करने, मनरेगा मजदूरों को 200 दिन का रोजगार देने व 350 रुपए दिहाड़ी लागू करने, करुणामूलक रोजगार देने, छठे वेतन आयोग की विसंगतियों को दूर करने की भी मांग की।
वहीं, मजदूरों का न्यूनतम वेतन 21 हजार रुपए घोषित करने, पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस व खाद्य वस्तुओं की भारी महंगाई पर रोक लगाने, सरकारी सेवाओं के निजीकरण, मोटर व्हीकल एक्ट में मालिक व मजदूर विरोधी संशोधनों व नेशनल मोनेटाइजेशन पाइप लाइन आदि मुद्दों पर प्रदेशव्यापी हड़ताल की।
इस दौरान मजदूर सरकार की जन विरोधी नीतियों के खिलाफ सड़कों पर उतरे। हड़ताल को ट्रेड यूनियनों व केंद्रीय फेडरेशनों के अलावा हिमाचल किसान सभा, जनवादी महिला समिति, दलित शोषण मुक्ति मंच, डीवाईएफआई व एसएफआई जैसे जनवादी संगठनों ने समर्थन दिया।
राष्ट्रव्यापी हड़ताल के दौरान चम्बा, तीसा, चुवाड़ी, धर्मशाला, हमीरपुर, ऊना, बिलासपुर, मंडी, सरकाघाट, जोगिन्दरनगर, बाली चौकी, कुल्लू, आनी, सैंज, सोलन, दाड़लाघाट, नालागढ़, बद्दी बरोटीवाला, परवाणु, नाहन, शिलाई, शिमला, ठियोग, रामपुर, रोहड़ू, कुमारसैन, निरमंड व टापरी आदि में मजदूरों द्वारा प्रदर्शन किए गए।
शिमला में मजदूरों व कर्मचारियों ने पंचायत भवन से राम बाजार, लोअर बाजार होते हुए डीसी आफिस शिमला तक एक रैली का आयोजन किया।
रैली में विजेंद्र मेहरा, बीएस चौहान, राहुल मेहरा, भारत भूषण, हुक्म चंद शर्मा, सेठ चंद, सुभाष भट्ट, रमाकांत मिश्रा, बालक राम, हिमी देवी, विनोद बिरसांटा, किशोरी ढटवालिया, कुलदीप तंवर, ओंकार शाद, संजय चौहान, फालमा चौहान, बलबीर पराशर, विवेक कश्यप, रामप्रकाश, रंजीव कुठियाला, रमन थारटा, अनिल ठाकुर, सत्यवान पुंडीर, जयशिव ठाकुर, विवेक राज, कपिल शर्मा, सोनिया सबरवाल, सीमा चौहान, पुष्पा देवी, जानकी देवी, प्रीति, हेतराम, शकुंतला, पूर्ण चंद, पवन शर्मा, विक्रम, चमन, दुष्यंत आदि मौजूद रहे।
सीटू राष्ट्रीय सचिव डा. कश्मीर ठाकुर, प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा, महासचिव प्रेम गौतम, इंटक प्रदेशाध्यक्ष हरदीप सिंह बाबा, महासचिव सीताराम सैनी, एटक प्रदेशाध्यक्ष जगदीश भारद्वाज, महासचिव देवकीनंद, एनजेडआईईए प्रदेशाध्यक्ष सुभाष भट्ट, महासचिव प्रदीप मिन्हास, एचपीएमआरए प्रदेशाध्यक्ष हुक्म चंद शर्मा व महासचिव सेठ चंद शर्मा ने कहा कि प्रदेश के मजदूर व कर्मचारी हड़ताल में शामिल रहे।
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार पूंजीपतियों व औद्योगिक घरानों के हित में कार्य कर रही है तथा मजदूर, कर्मचारी व आम जनता विरोधी कार्य कर रही है।
पिछले 100 सालों में बने 44 श्रम कानूनों को खत्म करके मजदूर विरोधी 4 श्रम संहिताएं अथवा लेबर कोड बनाना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।
कोरोना काल का फायदा उठाते हुए मोदी सरकार के नेतृत्व में हिमाचल प्रदेश जैसी कई राज्य सरकारों ने आम जनता, मजदूरों व किसानों के लिए आपदाकाल को पूंजीपतियों व कारपोरेट्स के लिए अवसर में तब्दील कर दिया।
यह साबित हो गया है कि यह सरकार मजदूर, कर्मचारी व जनता विरोधी है व लगातार गरीब व मध्यम वर्ग के खिलाफ कार्य कर रही है।
सरकार की पूंजीपति परस्त नीतियों से 80 करोड़ से ज्यादा मजदूर व आम जनता सीधे तौर पर प्रभावित हो रही है। सरकार फैक्टरी मजदूरों के लिए 12 घंटे के काम करने का आदेश जारी करके उन्हें बंधुआ मजदूर बनाने की कोशिश कर रही है।
आंगनबाड़ी, आशा व मिड-डे मील योजनकर्मियों के निजीकरण की साजिश की जा रही है। उन्हें वर्ष 2013 के 45वें भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिश अनुसार नियमित सरकारी कर्मचारी घोषित नहीं किया जा रहा है।
वक्ताओं ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा 26 अक्तूबर, 2016 को समान कार्य के लिए समान वेतन के आदेश को आउटसोर्स, ठेका, दिहाड़ीदार मजदूरों के लिए लागू नहीं किया जा रहा है और न ही उनके नियमितीकरण के लिए कोई नीति बनाई जा रही है।
केंद्र व राज्य के मजदूरों को एक समान वेतन नहीं दिया जा रहा है। हिमाचल प्रदेश के मजदूरों के वेतन को महंगाई व उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के साथ नहीं जोड़ा जा रहा है।
7वें वेतन आयोग व 1957 में हुए 15वें भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिश अनुसार उन्हें 21 हजार रुपए वेतन नहीं दिया जा रहा है।
मोटर व्हीकल एक्ट में मालिक व मजदूर विरोधी परिवर्तनों से इस क्षेत्र से जुड़े लोग रोजगार से वंचित हो जाएंगे व विदेशी कम्पनियों का बोलबाला हो जाएगा।
उन्होंने कहा कि मोदी सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों के कारण कोरोना काल में करोड़ों मजदूर बेरोजगार हो गए हैं परंतु मजदूरों को कोई आर्थिक राहत देने की बजाय उन्हें नियमित रोजगार से वंचित करके फिक्स टर्म रोजगार की ओर धकेला जा रहा है।
वर्ष 2003 के बाद नौकरी में लगे कर्मचारियों का नई पेंशन नीति के माध्यम से भारी शोषण किया जा रहा है। छठे वेतन आयोग की विसंगतियों से सरकारी कर्मचारी भारी संकट में हैं। भारी महंगाई व बेहद कम वेतन से मजदूर व कर्मचारी बेबसी की स्थिति में हैं।
वक्ताओं ने मांग की कि मजदूरों का न्यूनतम वेतन 21 हजार रुपए घोषित किया जाए और केंद्र व राज्य का एक समान वेतन घोषित किया जाए।
किसानों की फसल के लिए स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिशें लागू की जाएं। महिला शोषण व उत्पीड़न पर रोक लगाई जाए। नई शिक्षा नीति को वापिस लिया जाए।
बढ़ती बेरोजगार पर रोक लगाई जाए व बेरोजगारी भत्ता दिया जाए। आंगनबाड़ी, मिड-डे मील, आशा व अन्य योजना कर्मियों को सरकारी कर्मचारी घोषित किया जाए।
मनरेगा में 200 दिन का रोजगार दिया जाए व राज्य सरकार द्वारा घोषित 350 रुपए न्यूनतम दैनिक वेतन लागू किया जाए। श्रमिक कल्याण बोर्ड में मनरेगा व निर्माण मजदूरों का पंजीकरण सरल किया जाए।
निर्माण मजदूरों की न्यूनतम पेंशन 3 हजार रुपए की जाए व उनके सभी लाभों में बढ़ोतरी की जाए। कांट्रैक्ट, फिक्स टर्म, आउटसोर्स व ठेका प्रणाली की जगह नियमित रोजगार दिया जाए।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णयानुसार समान काम का समान वेतन दिया जाए। नई पेंशन नीति (NPS) की जगह पुरानी पेंशन नीति (OPS) बहाल की जाए।
बैंक, बीमा, बीएसएनएल, रक्षा, बिजली, परिवहन, पोस्टल, रेलवे, एनटीपीएस, एनएचपीसी, एसजेवीएनएल, कोयला, बंदरगाहों, एयरपोर्ट, सीमेंट, शिक्षा, स्वास्थ्य व अन्य सार्वजनिक उपक्रमों का विनिवेश व निजीकरण बंद किया जाए।
मोटर व्हीकल एक्ट में परिवहन मजदूर व मालिक विरोधी धाराओं को वापिस लिया जाए। 44 श्रम कानून खत्म करके बनाई गई मजदूर विरोधी 4 श्रम संहिताएं (लेबर कोड) बनाने का निर्णय वापिस लिया जाए।
सभी मजदूरों को ईपीएफ, ईएसआई, ग्रेच्युटी, नियमित रोजगार, पेंशन, दुर्घटना लाभ आदि सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाया जाए।
भारी महंगाई पर रोक लगाई जाए। पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस व खाद्य वस्तुओं की कीमतें कम की जाएं। रेहड़ी, फड़ी तहबाजारी के लिए स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट को सख्ती से लागू किया जाए।
सेवारत महिला कर्मचारियों को 2 वर्ष की चाइल्ड केयर लीव दी जाए। सेवारत कर्मचारियों की 50 वर्ष की आयु व 33 वर्ष की नौकरी के बाद जबरन रिटायर करना बंद किया जाए।
सेवाकाल के दौरान मृत कर्मचारियों के आश्रितों को बिना शर्त करुणामूलक आधार पर नौकरी दी जाए। Strike on the Call of Central Trade Unions and National Federations
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