डॉ0 संजय कुमार, निदेशक सीएसआईआर-आईएचबीटी, त्रिलोक कपूर, अध्यक्ष, ऊन संघ किसानों को सगंधित गेंदा बीज वितरित करने के उपरांत।
स्वर्ण क्रांति का प्रतीक- सगंध गेंदा दिवस का आईएचबीटी में आयोजन
- सीएसआईआर-अरोमा मिशन के अनतर्गत 200 किलो बीज कांगड़ा व चम्बाा के किसानों को वितरित किया गया।
- पहाड़ी इलाकों में उगाये टैजेटस तेल की कीमत 10,000 रुपये से 12,000 रुपये प्रति किलोग्राम के बीच होती है।
इंडिया न्यूज पालमपुर (Palampur Himachal Pradesh)
सीएसआईआर-आईएचबीटी पालमपुर (CSIR-IHBT Palampur) ने स्वर्ण क्रांति सगंध गेंदा (tagetus minuta) दिवस का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में 36 पंचायत और 14 नगर निगमों सहित पचास सहकारी समितियों के प्रतिनिधियों ने प्रतिभागिता की जिनके साथ लगभग 1000 से अधिक किसान जुड़े हैं। इस कार्यक्रम में विभिन्न सत्रों में इस फसल की पूरी जानकारी दी गई। समारोह का मुख्य आकर्षण हिमाचल प्रदेश के विभिन्न गांवों के सगंधित गेंदे के प्रगतिशील किसानों को बीज वितरण, प्रशिक्षण, व्यावहारिक प्रदर्शन तथा चर्चा रही।
डॉ0 संजय कुमार, निदेशक सीएसआईआर-आईएचबीटी, ने बताया कि कांगड़ा जिला अंतरराष्ट्रीय बाजार में पसंदीदा उच्च मांग वाले सुगंधित घटकों के साथ सगंध तेल का उत्पादन करने के लिए उपयुक्त है।
डॉ0 संजय कुमार, निदेशक सीएसआईआर-आईएचबीटी, पालमपुर (Dr Sanjay Kumar Director CSIR-IHBT Palampur) ने बताया कि कांगड़ा जिला अंतरराष्ट्रीय बाजार में पसंदीदा उच्च मांग वाले सुगंधित घटकों के साथ सगंध तेल का उत्पादन करने के लिए उपयुक्त है। सुगंधित फसलों की खेती से उच्च गुणवत्ता वाले सगंध तेल का उत्पादन करके हिमाचल प्रदेश के किसानों अपनी आजीविका बढ़ा सकते हैं। क्षेत्र के छोटे किसान छोटे समूहों का निर्माण कर उच्च लाभ प्राप्त करने के लिए छोटी जोत में फसल उगा कर लाभ प्राप्तू कर सकते हैं। टैजेटस माइन्यूटा (tagetus minuta सगंधित गेंदा) एक वार्षिक सगंध फसल है।
डॉ0 राकेश कुमार, वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक और कार्यक्रम समन्वयक किसानों को सगंधित गेंदा बीज वितरित करते हुए।
यह पौधा पत्तियों और फूलों में मौजूद अपने सगंध तेल के लिए व्यावसायिक रूप से उगाया और काटा जाता है और इसका उपयोग खाद्य, स्वाद, कॉस्मेटिक, इत्र और औषधीय उद्योगों में किया जाता है। उन्होंने आगे बताया कि सीएसआईआर-अरोमा मिशन के अनतर्गत 200 किलो बीज कांगड़ा व चम्बाा के किसानों को वितरित किया गया। जिससे 1670 कनाल क्षेत्र के इस फसल की खेती की जा सकती है।
त्रिलोक कपूर, अध्यक्ष, ऊन संघ ने यह आश्वासन दिया कि इन सहकारी समितियों के सभी प्रतिनिधि इन उच्च मूल्य वाली फसलों की खेती के लिए अपने-अपने क्षेत्र में काम करेंगे। उन्होनें पालमपुर एवं आसपास के किसानों को 70 किलो बीज उपलब्धर कराने के लिए संस्थान का आभार व्यक्त किया। अपने संबोधन में किसानों को ऐसी नगदी सगंध फसलों को लगाने तथा सरकारी योजनाओं को जन-जन तक पहुंचाने के लिए प्रेरित किया।
डॉ0 राकेश कुमार, वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक और कार्यक्रम समन्वयक ने देश की अर्थव्यवस्था के लिए टैजेटस माइन्यूटा फसल की कृषि तकनीक एवं गुणवत्ता युक्त उत्पादन के बारे में चर्चा की।
डॉ0 राकेश कुमार, वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक और कार्यक्रम समन्वयक ने देश की अर्थव्यवस्था के लिए टैजेटस माइन्यूटा फसल की कृषि तकनीक एवं गुणवत्ता युक्त उत्पादन के बारे में चर्चा की। प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि जब फसल पूरी तरह से खिल जाती है तो प्रति हेक्टेयर लगभग 12 से 15 टन बायोमास और 30 से 45 किलोग्राम तेल प्रति हेक्टेयर प्राप्त किया जा सकता है।
पहाड़ी इलाकों में उगाये टैजेटस तेल की कीमत 10,000 रुपये से 12,000 रुपये प्रति किलोग्राम के बीच होती है। किसान इस फसल को उगाकर और 5-6 महीने की अवधि मेंटैजेटस तेल का उत्पादन करके प्रति हेक्टेयर 1.2 से 1.5 लाख का शुद्ध लाभ प्राप्त कर सकते हैं, हालांकि पारंपरिक फसलों के मामले में लगभग रु 50,000 हेक्टेयर प्राप्त होता है।
इस माह में सीएसआईआर-अरोमा मिशन फेज-प्प् के अन्तरर्गत किसानों को 400 किलो सगंधित गेंदा बीज वितरित किया गया। टैजेटस माइन्यूटा 585 कनाल भूमि को कवर करेगा और इससे 350 से अधिक किसानों को लाभ होगा। चम्बा से प्रगति किसान कल्याण समिति सोसायटी के अध्यक्ष पवन कुमार ने भी अपने विचार प्रकट करते हुए बताया कि सिहुंता जिला चंबा की 5 उप-समितियां इस फसल को उगा रही है तथा वर्तमान में प्रत्येक किसान प्रति बीघा भूमि से 15,000 से 20,000 रुपये का शुद्ध लाभ कमा रहा है।
संस्थान के संकाय सदस्यों ने अपनी प्रस्तुमतियों में कृषि तकनीक, बुवाई, स्थल चयन, मिट्टी के नमूने, वृक्षारोपण, वृक्षारोपण तकनीक, पोषक तत्व प्रबंधन, खरपतवार प्रबंधन, कीट प्रबंधन, कटाई, आसवन, भंडारण और तेल की पैकेजिंग आदि के बारे में चर्चा की। निश्चित और प्रतिकूल मौसम की स्थिति और जंगली जानवरों की स्थितियों, आवारा मवेशियों की समस्या, दुर्गम क्षेत्र और उच्च श्रम पर कम शुद्ध लाभ के कारण किसानों ने पारंपरिक खेती की फसलों में अपनी मुख्य समस्याओं पर भी चर्चा की गई। इसे देखते हुए सगंध गेंदेकी फसल एक उपयुक्त विकल्प प्रदान करती है क्योंकि यह इन कारकों से अप्रभावित रहती हैऔर बंजर भूमि को उपयोग में भी लाती है। वैज्ञानिक टीम ने किसानों की समस्याओं पर भी चर्चा की और बुवाई, खेती और कटाई से संबंधित उनके प्रश्नों का समाधान किया।