Himachal Pradesh: राहुल गांधी के मानहानि केस में सूरत कोर्ट के फैसले और उनकी संसद से सदस्यता रद्द किए जाने पर बीजेपी नेता और हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने इसे संविधान के अनुरूप आया फैसला बताया। उन्होंने कहा कि अगर यह निर्णय सामने आया है तो कोर्ट के आदेशों और संविधान की पालना के अनुरूप आया है, लेकिन कल (24 मार्च) जो हिमाचल विधानसभा में हुआ वह दुर्भाग्यपूर्ण था। उन्होंने कहा कि प्रदेश के मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री और मंत्री जो की संविधानिक पदों पर है, उन्होंने विधानसभा का बहिष्कार करते हुए केंद्र सरकार के खिलाफ नारे लगाते हुए बाहर निकल गए उन्होंने कहा कि यह सरकार के संविधानिक पदों पर बैठे प्रतिनिधियों को शोभा नहीं देता। बता दे कि कल विधानसभा में प्रदेश कांग्रेस के विधायकों ने राहुल गांधी के सूरत कोर्ट के फैसले पर बीजेपी के विरूध जमकर नारेबाजी की।
जयराम ठाकुर ने कहा ‘कांग्रेस के नेता राहुल गांधी के ऊपर सूरत कोर्ट में महारानी का मामला चल रहा था, जिसके अंतर्गत उन्हें 2 साल की सजा सुनाई गई। इसके बाद भारत के संविधान के अनुच्छेद 102 (1) रिप्रेजेंटेशन आफ पीपल्स एक्ट 1951 की धारा 8 के अंतर्गत, जिसमें स्पष्ट लिखा है कि अगर किसी सांसद या विधायक को किसी अपराध में दोषी ठहराया जाता है और उसे 2 साल या इससे ज्यादा समय के लिए सजा सुनाई जाती है तो उसकी संसद या विधानसभा की सदस्यता खत्म हो जाती है। इसे पूर्ण रूप से स्पष्ट होता है कि राहुल गांधी की सदस्यता किसी राजनीतिक प्रेरणा से समाप्त नहीं की गई है अन्यथा भारत के संविधान हेतु समाप्त की गई है।’
जयराम ठाकुर ने कहा कि राहुल गांधी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता है और उनकी आदत बन चुकी है कि वह अपने भाषण में आम जनता और आम विभिन्न सामाजिक समुदाय की भावनाओं को वह बार-बार ठेस पहुंचाते हैं। उन्होंने कहा कि ऐसी एक घटना नहीं है अनेकों घटनाएं हो चुकी है और अब तो ऐसी घटनाएं देश तक सीमित नहीं रही है विदेश में भी राहुल गांधी द्वारा की जा चुकी है।
उन्होंने कहा कि राहुल गांधी के ऊपर मानहानि के अनेकों मामले भारत में चल रहे हैं जिसमें से 2014 और 2016 के मामले हमारे समक्ष है। सर्वोच्च न्यायालय ने 11 जुलाई 2013 को अपने फैसले में कहा था कि कोई भी सांसद या विधायक निचली अदालत से दोषी करार दिए जाने की तारीख से ही संसद या विधानसभा की सदस्यता के लिए अयोग्य घोषित हो जाएगा, इस फैसले के उपरांत कानून ने केवल अपना कार्य किया है।
जयराम ठाकुर ने कहा कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि किसी सांसद ने अपनी सदस्यता इस कानून के अंतर्गत रद्द की गई है, 1976 में सुब्रह्मण्यन स्वामी, 1978 में इंदिरा गांधी, 2005 में 11 सांसद , 2013 में लालू प्रसाद यादव जैसे कई नेताओं ने अपनी सदस्यता इस कानून के अंतर्गत खोई है।
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