India News(इंडिया न्यूज़), Vir Baal Divas: 21 से 27 दिसंबर का हफ्ता सिक्खों के बीच शहादत का हफ्ता माना जाता है। गुरु गोबिंद सिंह के पुत्रों को 26 दिसंबर के दिन ही मुगल सेना द्वारा मार दिया गया था। उनकी इसी शहादत का सम्मान करने के लिए पीएम मोदी ने पिछले साल की शुरुआत में 9 जनवरी को घोषणा की थी कि 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस के रूप में मनाया जाएगा।
यह दिन चार साहिबजादे अजीत, जुझार, जोरावर और फतेह अपने साहस के लिए जाने जाते हैं। जिन्हें तत्कालीन शासक औरंगजेब के आदेश पर मुगलों द्वारा कथित तौर पर मार दिया गया था। इन्ही की शहादत में वीर वाल दिवस मनाया जाता है। इस आर्टिकल में हम उन्ही की कहानी पढ़ेंगे..
गुरु गोबिंद सिंह जी और उनके 4 साहिबजादे के संघर्ष की शुरुआत आनंदपुर साहिब किले से हुई थी। जहां मुगलों और गुरु गोबिंद सिंह के बीच कई महीने से जंग चल चली। मुगल तरह-तरह की रणनीति बना रहे थे, लेकिन गुरु गोबिंद सिंह जी भी हार मानने को तैयाार नहीं थे। उनके इस साहस से मुगल बादशाह औरंगजेब भी हैरान था।
जब महीनों चली जंग में औरंगजेब को जीत हासिल नहीं हुई तो उसने गुरु गोबिंद सिंह जी को पत्र भेजा, जिसमें लिखा था, मैं कुरान की कसम खाता हूं कि अगर आनंदपुर किले को खाली कर दिया जाता है तो मैं बिना रोकटोक आप सभी को यहां से जाने दूंगा। गुरु गोबिंद सिंह जी ने किले को छोड़ना बेहतर समझा, लेकिन औरंगजेब ने धाेखा दिया और उनकी सेना पर हमला कर दिया। सरसा नदी के किनारे लम्बा युद्ध चला जहां उनका परिवार बिछड़ गया। गुरु गोबिंद सिंह के छोटे साहिबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह दादी गुजरी देवी के संग चले गए। बड़े बेटे पिता के साथ सरसा नदी को पार करने के बाद चमकौर साहिब गढ़ पहुंच गए।
दादी के साथ दोनों छोटे बेटे जंगल से गुजरते हुए एक गुफा तक पहुंचे। उनके पहुंचने की खबर जब लंगर की सेवा करने वाले गंगू ब्राह्मण को मिली तो वो उन्हें अपने घर ले आया। लेकिन वहां गंगू ने पहले गुजरी देवी के पास रखी अशर्फियों को चुराया। फिर और लालच में उनकी मौजूदगी की जानकारी कोतवाल को दे दी। कोतवाल ने तुरंत कई सिपाही भेजकर सभी को कैदी बना लिया। अगली सुबह इन्हें सरहंद के बसी थाने ले जाया गया। जहां इनके साथ इनके समर्थन में सैकड़ों लोग साथ चले आए। थाने में उन्हे एक ऐसी ठंडी जगह पर रखा गया, जहां बड़े-बड़े लोग हार मान जाएं। उन्हे डराया गया, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
बाद में सभी लोगों को नवाब वजीर खान के सामने पेश किया गया। वजीर खान ने साहबजादों ने शर्त रख कहा, अगर तुम मुस्लिम धर्म को अपना लेते हो तो तुम्हे मुंह मांगी मुराद मिलेगी और छोड़ दिया जाएगा। साहिबजादों ने इसका विरोध करते हुए कहा, हमें अपना धर्म सबसे प्रिय है। इस पर नवाब भड़का और कहने लगा इन्हें सजा देनी चाहिए। काजी ने फतवा तैयार किया जिसमें लिखा कि बच्चे बगावत कर रहे हैं, इसलिए इन्हें दीवार में जिंदा चुनवा दिया जाए।
अगले दिन सजा देने से पहले से फिर उन्हें फिर मुस्लिम धर्म को स्वीकार करने का लालच दिया गया, लेकिन वो अपनी बात पर टिके रहे। यह सुनते ही जल्लाद साहिबजादों को दीवार में चुनने लगे। कुछ समय बाद दोनों बेहोश हो गए और उन्हें शहीद कर दिया गया।
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