केसर व हींग की कृषि तकनीकों पर सीएसआईआर-आईएचबीटी पालमपुर में कैपसटी बिल्डिंग कार्यक्रम संपन्न

केसर व हींग की कृषि तकनीकों पर सीएसआईआर-आईएचबीटी पालमपुर में कैपसटी बिल्डिंग कार्यक्रम संपन्न

  • देश में हींग व केसर का मांग के अनुरूप उत्पादन नहीं,
  • वैकल्पिक स्थलों का चयन और कृषि अधिकारियों व किसानों को प्रशिक्षित करने पर बल
  • कृषि अधिकारीयों को केसर व हींग की खेती व मार्किट के बारे में विस्तार से जानकारी
  • हिमाचल प्रदेश को केसर एवं हींग का अग्रणी निर्माता बनाना ही इस परियोजना का उद्देश्य

इंडिया न्यूज, पालमपुर (Palampur-Himachal Pradesh)

सीएसआईआर-आईएचबीटी (CSIR-IHBT) पालमपुर (palampur) में केसर (kesar) व हींग (hing) की उत्पादन (production) तकनीक पर कृषि विभाग (agriculture department), हिमाचल प्रदेश (HP)के कृषि अधिकारियों हेतु पांच दिवसीय दक्षता विन्यास (capacity building) कार्यक्रम संपन्न हुआ। इस कार्यक्रम में हिमाचल के चंबा (chamba), कांगड़ा (kangra), किन्नौर (hinnaur), कुल्लू (kullu), लाहौल स्पीति (lahul and spiti) और मंडी (mandi) जिला के तेरह कृषि विकास अधिकारी (agriculture development officer) और कृषि विस्तार अधिकारी (agriculture extension officer) ने भाग लिया।

इस अवसर पर संस्थान के निदेशक डॉ0 संजय कुमार ( Dr sanjay kumar) ने अपने संबोधन में कहा कि सीएसआईआर-आईएचबीटी (CSIR-IHBT) पालमपुर राज्य सरकार (state government) द्वारा वित्त पोषित परियोजनाओं को ’’कृषि से संपदा योजना’’ (“Krishi Se Sampada Yojana”) के अन्तर्गत राज्य कृषि विभाग के सहयोग से केसर (kesar) और हींग (hing) की खेती का विस्तार कर रहा है। इस गतिविधि को जारी रखते हुए हिमाचल प्रदेश के गैर-पारंपरिक क्षेत्रों (non-traditional areas) में केसर (kesar) और हींग (hing) की सफल खेती हेतु समय-समय पर किसानों (farmers) के प्रक्षेत्रों एवं सीएसआईआर-आईएचबीटी में प्रशिक्षण शिविर (training camp) का आयोजन किया जा रहा है। उन्होने हिमाचल प्रदेश को केसर एवं हींग का प्रमुख उत्पादक राज्य बनाने के अपने संकल्प को भी दोहरायाा। उन्होने कृषि अधिकारियों को केसर एवं हींग की खेती के प्रत्येक क्षेत्र में संस्थान की टीम के सहयोग का आश्वासन भी दिया।

देश में हींग व केसर का मांग के अनुरूप उत्पादन नहीं, इसलिए वैकल्पिक स्थलों का चयन और कृषि अधिकारियों व किसानों को प्रशिक्षित करने पर बल-राकेश कुमार

डॉ0 राकेश कुमार, वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक एवं कार्यक्रम समन्वयक (Dr. Rakesh Kumar, Senior Principal Scientist and Program Coordinator) (दक्षता विन्यास कार्यक्रम) ने देश की अर्थव्यवस्था के लिए मसाला फसलों, केसर और हींग के उत्पादन के महत्व के बारे में चर्चा की। उन्होने बताया कि इस कार्यक्रम में संस्थान के संकाय सदस्यों द्वारा कृषि तकनीक (Agricultural Techniques), बुवाई (sowing), स्थल चयन (Site Selection), मिट्टी के नमूने (Soil Sampling), वृक्षारोपण (plantation), वृक्षारोपण तकनीक (plantation techniques), पोषक तत्व प्रबंधन (Nutrient Management), खरपतवार प्रबंधन (Weed Management), कीट प्रबंधन (Pest Management), कटाई (harvest), भंडारण (Storage), पैकेजिंग (Packaging) और केसर (kesar) व हींग (hing) के उत्तक संवर्धन तकनीकों पर जानकारी प्रदान की गई।

प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि भारत में केसर की वार्षिक मांग (yearly demand) लगभग 100 टन है जबकि जम्मू और कश्मीर में केवल 9-13 टन का उत्पादन होता है जो देश की मांग आपूर्ति (demand supply) के लिए पर्याप्त नहीं है, अतः ईरान (Iran) व अफगानिस्तान (Afghanistan) जैसे देशों से इसका आयात (import) किया जाता है। इन फसलों के आयात को कम करने के लिए, इसकी खेती के लिए वैकल्पिक स्थलों का चयन और कृषि अधिकारियों व किसानों को प्रशिक्षित करने पर बल दिया गया है।

हींग व केसर का आयात कम करने के लिए उपयुक्त क्षेत्रों में इनकी खेती की जाए-अशोक कुमार

गौरबतलव है कि वर्तमान में, केसर केवल जम्मू-कश्मीर ( J and K) के पंपोर (pampore) और किश्तवाड़ (kisthwar) क्षेत्र में उगाया जा रहा है। डॉ0 अशोक कुमार, परियोजना अन्वेषक (हींग परियोजना) Dr. Ashok Kumar, Project Investigator (Asafoetida (hing) Project), ने बताया कि इसी प्रकार अफगानिस्तान (Afghanistan), ईरान (Iran)और उज्बेकिस्तान (Ujbekistan) से 1540 टन हींग आयात करने के लिए देश प्रति वर्ष लगभग 942 करोड़ रुपये खर्च करता है। भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए आवश्यक है कि इन मसाला फसलों के उत्पादन के लिए उपयुक्त क्षेत्रों में इनकी खेती की जाए।

कृषि अधिकारीयों को केसर व हींग की खेती व मार्किट के बारे में विस्तार से जानकारी

पाँच दिवसीय कार्यक्रम में कृषि अधिकारियों को केसर व हींग की उन्नत कृषि तकनीक, गुणवत्ता विश्लेषण, जैविक तथा अजैविक स्ट्रैस प्रबंधन एवं फसलौपरांत परक्रामण एवं भंडारण के बारे में व्यावहारिक प्रदर्शन के माध्यम से जानकारी दी गई। अधिकारियों को केसर एवं हींग की ऊतक संवर्धन तकनीकों से भी रूबरू कराया गया एवं उसका व्यावहारिक अनुभव भी दिया गया। पांच दिवसीय क्षमता निर्माण कार्यक्रम का समापन पर कृषि अधिकारियों को भागीदारी प्रमाण पत्र के वितरण और डॉ0 संजय कुमार, निदेशक, सीएसआईआर-आईएचबीटी और कृषि अधिकारियों की एक संक्षिप्त बातचीत के साथ हुआ।

हिमाचल प्रदेश को केसर एवं हींग का अग्रणी निर्माता बनाना ही इस परियोजना का उद्देश्य-डा0 संजय शर्मा

इस अवसर पर निदेशक डा0 संजय शर्मा ने कृषि अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा की हिमाचल प्रदेश को केसर एवं हींग का अग्रणी निर्माता बनाना ही इस परियोजना का उद्देश्य है। केसर एवं हींग का अधिक से अधिक उत्पादन इस क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने हेतु अति आवश्यक है। उन्होने आगे कहा की की इस परियोजना को सफल बनाने में कृषि अधिकारियों का अहम भूमिका रहेगी। प्रतिभागियों को पूरे सहयोग का आश्वासन दिया तथा आहवान किया कि केसर और हींग की अच्छी कृषि पद्धतियों का विस्तार अपने क्षेत्रों में करें ताकि किसानों को आत्मनिर्भर बनाया जा सके।

ड़ा0 सनतसुजात सिंह, वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक एवं विभागाध्यक्ष कृषि प्रौद्योगिकी प्रभाग द्वारा धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया एवं इस परियोजना की सफलता की कामना की।

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Shailesh Bhatnagar

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