Premature Baby: गर्भवती महिलाओं की इस वजह से होती हैं प्रीमैच्योर डिलीवरी, एक अध्ययन में हुआ खुलासा

India News(इंडिया न्यूज़), Premature Baby: जैसा कि आप जानते हैं कि महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान अपने बच्चों की भलाई सुनिश्चित करने के लिए अपने स्वास्थ्य का अतिरिक्त ध्यान रखना होता है। इस दौरान उन्हें हर उस परीक्षण से गुजरना पड़ता है जिससे यह पता चलता है कि उनका बच्चा गर्भ के अंदर सही है या नहीं?

एक अध्ययन में हुआ खुलासा

दरअसल, हाल ही में आए एक अध्ययन में गर्भवती महिलाओं को एनोरेक्सिया नर्वोसा जैसी ईटिंग डिसऑर्डर को डायग्नोसिस किया गया है, जिसमें औसतन कम वजन वाले बच्चे होने की संभावना के बारे में जिक्र किया गया है।  5 गुना अधिक होती है,

ESHRE की 38वीं वार्षिक बैठक में प्रस्तुत किए गए अध्ययन के परिणामों में एनोरेक्सिया से पीड़ित महिलाओं में बच्चों का समय से पहले जन्म का जोखिम (298%) बढ़ा हुआ पाया गया, इसके साथ ही प्लेसेंटल एब्स्ट्रक्शन की संभावना (341%) से दोगुनी से अधिक दिखाई दी.

क्या है एनोरेक्सिया नर्वोसा?

आपको बता दें कि एनोरेक्सिया नर्वोसा एक खाने का डिसऑर्डर है जहां एक व्यक्ति अपना वजन जितना कम हो सकता है उतना कम रखता है। इस बीमारी से पीड़ित लोग आमतौर पर खाने की मात्रा पर नियंत्रण रखकर और अत्यधिक व्यायाम करते हैं और यह हालत अक्सर शरीर के आकार और वजन की चिंता को लेकर पैदा होती है, जिसकी शुरुआत मोटापे के डर या पतले रहने की इच्छा से होती है। एनोरेक्सिया से पीड़ित लोगों के दिमाग में खुद की एक खराब इमेज होती है जहां वह सोचते हैं कि वह मोटे हो रहे हैं पर ऐसा नहीं होता है।

वहीं गर्भावस्था पर इसके प्रभावों के बारे में बात करते हुए, विशेषज्ञ बताते हैं कि, “एनोरेक्सिया नर्वोसा वाली गर्भवती महिलाओं में उच्च रक्तचाप, गर्भपात, कठिन श्रम, समय से पहले प्रसव और अंतर्गर्भाशयी विकास प्रतिबंध होने का जोखिम अधिक होता है।

विशेषज्ञ के मुताबिक एनोरेक्सिया नर्वोसा वाली महिलाओं में स्टिलबर्थ होने की संभावना लगभग दोगुनी थी, जिसमें 30% समय से पहले जन्म का अनुभव होने की संभावना थी, 70% कम वजन के शिशु होने की संभावना थी, और 50% के लिए एक छोटे से गर्भावधि होने की संभावना थी। “एनोरेक्सिया नर्वोसा आयरन, फोलेट, जिंक और विटामिन ए की कमी से भी जुड़ा हुआ है।

जानें इसके लक्षण

बता दें कि इस बीमारी में कुछ शारीरिक संकेतों के अलावा व्यवहारिक और भावनात्मक लक्षण भी होते हैं। “जबकि व्यवहार परिवर्तन में अधिक खाना, बाध्यकारी भोजन की आदतें, अत्यधिक व्यायाम या अत्यधिक शारीरिक प्रशिक्षण शामिल हैं, भावनात्मक लक्षणों में चिंता, आशंका, या गिल्ट, वजन बढ़ने का एक गहन भय शामिल है। वहीं शारीरिक प्रभाव में कम वजन, निम्न रक्तचाप, मांसपेशियों का कम होना।

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Aakriti Singh

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