हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के अनुसार बिना तलाक के दूसरी शादी कर सकते है। हिंदू मैरिज एक्ट के मुताबिक पत्नी की सहमति से भी दूसरी शादी नहीं कर सकते है। ये कानून बौद्ध, सिख, जैन पर भी लागू होता है। लेकिन कुछ मामलो में इस एक्ट के तहत आने वाले लोग बिना तलाक के दूसरी शादी कर सकते हैं। जैसे
हिंदू विवाह एक्ट के तहत बिना तलाक दूसरी शादी करने पर सजा का प्रावधान है। आईपीसी की धारा 494 के तहत दूसरी शादी अपराध की श्रेणी में रखा गया है। ऐसे मामले में 7 साल की सजा और जुर्माना हो सकता है।
भारत में मुसलमानों के लिए एक से ज्यादा शादी करने पर किसी तरह की कोई रोक नहीं है। आईपीसी की धारा 494 के तहत मुसलमान पुरुषों को दूसरा निकाह करने की इजाजत है। इसी तरह से शरियत कानून की धारा 2 के अनुसार बहुविवाह की अनुमति है। पहली पत्नी की सहमति के बिना चार शादियां कर सकते है। हालांकि इस कानून के तहत सिर्फ पुरुषों को दूसरी शादी की इजाजत होती है। मुस्लिम महिलाओं को मुस्लिम विवाह अधिनियम 1937 के तहत दूसरी शादी की इजाजत नहीं दी गई है। अगर कोई मुस्लिम महिला दूसरी शादी करना चाहती है तो पहले उसे पति से तलाक लेना जरूरी है।
ईसाई धर्म में दूसरी शादी नहीं कर सकते है। बिना तलाक के दूसरी शादी करने पर रोक है। यदि दंपति में सें किसी की मौत हो जाती है तो दूसरी शादी करने की अनुमति है। लेकिन पहली शादी चर्च में रद्द होना जरूरी है।
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