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Anti Cheating Law: अब भूलकर भी नकल मत कर लेना नहीं तो करोड़ों का लगेगा जुर्माना, साथ में 10 साल जेल की हवा फ्री

• LAST UPDATED : February 9, 2024

India News ( इंडिया न्यूज ), Anti Cheating Law: कंपटीशन एग्जाम में निष्पक्ष खेल सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम में, संसद ने शुक्रवार को सख्त दंड देने के लिए एक विधेयक पारित किया। सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) विधेयक, 2024, धोखाधड़ी या किसी भी प्रकार की अनियमितता में सहायता करने के दोषी पाने पर अधिकतम 10 साल की जेल की सजा और ₹ 1 करोड़ तक जुर्माना है। यह विधेयक 6 फरवरी को लोकसभा की मंजूरी के बाद आज राज्यसभा में पारित हो गया।

परीक्षाओं में फर्जी कामों को रोकना

यह नया कानून परीक्षा में होने वाली गड़बड़ियों के लिए बनाया गया है। जिसका उद्देश्य महत्वपूर्ण परीक्षाओं में सभी उम्मीदवारों के लिए समान अवसर प्रदान करना और निष्पक्ष तरीके से कंपटीशन होना है। इस कानून का उद्देश्य सख्त कारवाई कर दंड लगाकर प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं में फर्जी कामों को रोकना है। इसके अलावा विधेयक कम्प्यूटरीकृत परीक्षा प्रक्रियाओं की सुरक्षा बढ़ाने के उद्देश्य से सार्वजनिक परीक्षाओं पर एक राष्ट्रीय तकनीकी समिति की स्थापना का सुझाव देता है। यह समिति इस संबंध में सिफारिशें प्रदान करने के लिए जिम्मेदार होगी।

प्रमुख विशेषताऐं:

कठोर दंड: इस विधेयक में धोखाधड़ी या धोखाधड़ी में मदद करने के दोषी पाए जाने वालों के लिए अधिकतम 10 साल की जेल की सजा और ₹ 1 करोड़ तक का जुर्माने का प्रावधान है।

संगठित धोखाधड़ी को लक्षित करना: यह विशेष रूप से संगठित धोखाधड़ी गतिविधियों में शामिल व्यक्तियों और संस्थानों को टारगेट करता है, जैसे प्रश्न पेपर लीक करना या उत्तर कॉपी के साथ छेड़छाड़ करना।

मेरिटोक्रेसी की रक्षा करता है: इसका उद्देश्य उन अनुचित प्रथाओं को रोकना है जो प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं में योग्यता-आधारित चयन को कमजोर करते हैं, जिससे सभी उम्मीदवारों के लिए समान अवसर सुनिश्चित होते हैं।

वर्तमान स्थिति:

लोकसभा और राज्यसभा दोनों से पारित।
राष्ट्रपति की मंजूरी का इंतजार

विवाद के मुख्य बिंदु

छात्रों और उम्मीदवारों पर दंड न लगाना चिंता पैदा करता है, क्योंकि केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने मंगलवार को लोकसभा को सूचित किया कि परीक्षाओं में फर्जीवाड़ा को रोकने के लिए प्रस्तावित कानून उन पर लागू नहीं होगा।
मौजूदा कानून: कुछ लोगों का तर्क है कि मौजूदा कानून पहले से ही इन मुद्दों का समाधान करते हैं, और एक अलग विधेयक की जरूरत नही है।

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