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Buddha Amritwani: बुद्ध ने क्यों कहा बिना हल और बैल के ‘अमृत खेती’ का रहस्य, जानिए कहानी के पिछे की वजह

• LAST UPDATED : June 7, 2023

India News(इंडिया न्यूज़), Buddha Amritwani: बौद्ध धर्म के प्रवर्तक महात्मा बुद्ध की अमृतवाणी में जीवन के समस्त कष्टों से मुक्ति पाने का सूत्र छिपा हुया है। उनका ज्ञान, उपदेश, विद्या और विचार जीवन को सुखमय बनाते हैं। बुद्ध ने बोधि वृक्ष के नीचे बैठकर वर्षों तक तपस्या की और जिसके बाद उन्हें दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई और इस तरह वे सिद्धार्थ गौतम से भगवान बुद्ध बन गए।

बुद्ध के जीवन से जुड़ी कुछ लोकप्रिय कहानियां

गौतम बुद्ध के जीवन से जुड़ी कई लोकप्रिय कहानियां हैं। लेकिन इन कहानीयो  में  ‘अमृत खेती’ से जुडी कई जानकारी भी है । जी हां, ऐसी खेती जिसमें हल की जरूरत नहीं होती,न कोई बैल की और न ही किसी बीज की। इस कहानी में गौतम बुद्ध ने अमृत की खेती के रहस्य के बारे में बहुत कुछ बताया है। वहीं एक बार भगवान बुद्ध भिक्षाटन करते हुए एक किसान के द्वार पर पहुंचे थे । भिखारी को अपने दरवाजे पर आता देख किसान ने लापरवाही से कहा, ‘श्रमण, मैं खुद हल चलाता हूं और फिर अपना पेट भरता हूं। आपको भी हल जोतना चाहिए और बीज बोने चाहिए। इसके बाद कड़ी मेहनत करके भोजन करना चाहिए।

किसान की बात सुनकर बुद्ध मुस्कुराए और बोले, हे अन्नदाता, मैं भी खेती करता हूं। किसान को बुद्ध की बात सुनकर कौतूहल हुआ और उसने कहा, तुम्हारे पास न तो मुझे हल दिखाई दे रहा है, न बैल और न ही खेती के लिए जमीन। तो आप कैसे कह रहे हैं कि आप भी खेती करके ही खाना खात हैं। तुम मुझे अपनी खेती के बारे में थोड़ा समझाओ।

बुद्ध ने किसान से कहा, मुझमें भक्ति, विश्वास, आदर और ममता का बीज है। मन की पवित्रता, उपवास और धर्म के लाभ के लिए पालन किए जाने वाले नियम, इंद्रियों पर नियंत्रण, तपस्या, योगाभ्यास, समाधि, ब्रह्मचर्य, तपस्या के रूप में वर्षा और जीवित प्राणियों के रूप में जोती और हल है। । मेरे पास पाप की सजा है। काले लोहे से सोना बनाने की सुविचारों की पारस जैसी रस्सी मेरे पास है, स्मृति और जागरूकता जैसी हल और कौड़ी।

बुद्ध ने कहा, मैं वचन और कर्म में संयमित हूं। मैं अपनी इस साधना को अनावश्यक के नकारात्मक विचारों के खरपतवार से मुक्त रखता हूँ और तब तक भरसक प्रयास करता हूँ जब तक कि मैं आनंद की फसल न काट लूँ। असावधानी के कारण ही आसुरी वृत्ति वाले काल से हार जाते हैं और अप्रमाद अर्थात् साधु प्रवृत्ति वाले ब्रह्म के रूप में अमर हो जाते हैं। यह अप्रमाद  मेरा बैल है, जो विघ्न देखकर भी कभी पीछे नहीं हटता। डायरेक्ट शान्तिधाम ले जाते हैं। ऐसे में मैं भी आपकी तरह एक किसान हूं और अमृत की खेती करता हूं।

Reported By : Kashish Goyal

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