इंडिया न्यूज, धर्मशाला(Dharamshala Himachal Pradesh)
हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के शाहपुर परिसर (Shahpur campus of Central University of HP) में वैद्य सुषेण क्लब, पादप विज्ञान विभाग (Department of Plant Pathalogy), की ओर से हिमाचल में कम उपयोग वाली फसलों की क्षमता पर एक संगोष्ठी (seminar) का आयोजन किया गया। संगोष्ठी का आयोजन प्रो0 प्रदीप कुमार, अधिष्ठाता, जैविक विज्ञान स्कूल, हिमालयन लाइफ साइंस सोसाइटी के अध्यक्ष, विभागाध्यक्ष, पादप विज्ञान विभाग और अधिष्ठाता अकादमिक के मार्गदर्शन में किया गया था। बतौर मुख्य वक्ता इसमें डॉ0 नीलम भारद्वाज, एसोसिएट प्रोफेसर, प्लांट ब्रीडिंग एंड जेनेटिक्स, चावल और गेहूं अनुसंधान केंद्र मलां, कृषि विवि पालमपुर ने भाग लिया। वहीं संगोष्ठी में सभी संकाय सदस्य, शोधार्थी एवं स्नातकोत्तर छात्र उपस्थित थे। संगोष्ठी का मुख्य उद्देश्य हिमाचल प्रदेश की कम उपयोग वाली फसलों के बारे में ज्ञान प्राप्त करना था।
उन्होंने कुछ महत्वपूर्ण फसलों जैसे कि बकव्हीट (Buckwheat), ग्रेन ऐमारैंथ (Grain Amaranth), चेनोपोडियम (Chenopodium), छोटा बाजरा (Small Millet), राइस बीन (Rice Bean) और फैबा बीन (Faba Bean) के बारे में कुछ रोचक तथ्य साझा किए जो आजकल उपेक्षित हैं और पारंपरिक रूप से प्राचीन भारत में उपयोग किए जाते रहे हैं। उन्होंने विशेष रूप से बकव्हीट के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि यह एक ग्लुटेनमुक्त फसल है इसलिए इसे सीलिएक रोग या ग्लुटेन एलर्जी से ग्रसित लोगों द्वारा वैकल्पिक भोजन के रूप में लिया जा सकता है। बकव्हीट (Buckwheat) भी आवश्यक अमीनो एसिड का एक समृद्ध स्रोत है, विशेष रूप से लाइसिन जो आम तौर पर अधिकांश लोकप्रिय अनाज और बाजरा के प्रोटीन में कम होता है। चाय के लिए सूखे बकव्हीट के पत्ते यूरोप (Dry leaves of Buckwheat in Europe) में ’’फागोरुटिन’’ (fagorutin) ब्रांड नाम के तहत निर्मित किए जाते थे। इसके अपार स्वास्थ्य लाभों के बावजूद, अनुसंधान अध्ययनों की कमी और किसानों के बीच सेब, आलू, मटर आदि जैसी व्यावसायिक फसलों की अधिक लोकप्रियता के कारण बकव्हीट की खेती में गिरावट आई है। उन्होंने इन फसलों की खेती के लिए हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू और कश्मीर और शेष उत्तर पूर्व राज्यों जैसे पहाड़ी राज्यों के लिए स्वॉट विश्लेषण पर भी प्रकाश डाला।
बकव्हीट के साथ-साथ वह कुछ अन्य कम उपयोग वाली फसलों जैसे कि ऐमारैंथ, चेनोपोडियम आदि के महत्व पर भी उन्होंने चर्चा की। अनाज की तुलना में चेनोपोडियम में उच्च ग्रेनप्रोटीन होता है।
अंत में डॉ. प्रदीप कुमार ने अतिथि वक्ता, संकाय सदस्यों और छात्रों को धन्यवाद प्रस्ताव दिया। इस संगोष्ठी का संचालन पादप विज्ञान विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ0 आशुन चैधरी ने किया।