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वनों की आग से निकले धुएं से सांस, हृदय और प्रतिरक्षा संबंधी बीमारियां बढ़ीं

• LAST UPDATED : April 28, 2022

वनों की आग से निकले धुएं से सांस, हृदय और प्रतिरक्षा संबंधी बीमारियां बढ़ीं

  • पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के लिए वन संपदा की भूमिका अति महत्वपूर्ण
  • घटना में संलिप्त पाए जाने पर आपदा प्रबंधन अधिनियम और वन संरक्षण अधिनियम के तहत होगी कार्रवाई
  • वनों में आगजनी पर लोगों से सहयोग का आह्वान
  • वन संपदा के संरक्षण को लेकर पूर्वजों द्वारा किए गए महान कार्यों से ली जानी चाहिए प्रेरणा

इंडिया न्यूज, चम्बा।

जिले के विभिन्न क्षेत्रों के तहत वनों में बढ़ रही आगजनी की घटनाओं के दृष्टिगत सभी जिला वासियों से सहयोग का आह्वान किया है।

ये आह्वान उपायुक्त दुनी चंद राणा ने पंचायतीराज संस्थाओं व गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों को वनों में आगजनी की घटनाओं को रोके जाने को लेकर वन विभाग का हरसम्भव सहयोग करने के निर्देश भी दिए हैं।

उन्होंने ये निर्देश भी दिए हैं कि वन संपदा को आग लगाने में संलिप्त पाए जाने वाले लोगों के खिलाफ आपदा प्रबंधन अधिनियम और वन संरक्षण अधिनियम के तहत कार्रवाई सुनिश्चित बनाई जाए।

आगजनी की घटनाओं को रोकना अत्यंत आवश्यक

डीसी ने कहा है कि चूंकि जिले की भौगोलिक परिस्थितियां प्राकृतिक आपदाओं की दृष्टि से अति संवेदनशील हैं। ऐसे में पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने के लिए वन संपदा की अति महत्वपूर्ण भूमिका के कारण आगजनी की घटनाओं को रोका जाना अत्यंत आवश्यक है।

उन्होंने ये भी कहा है कि आग मिट्टी में नमी को बनाए रखने की क्षमता को समाप्त कर देती है। इसके कारण सीधे तौर पर जल की उपलब्धता प्रभावित होती है।

हरित आवरण के जलने से भू-क्षरण की शुरू हुई प्रक्रिया भविष्य में भूमि कटाव व भूस्खलन की घटनाओं को और बढ़ाते हैं। आग के कारण झाड़ियों, घास, पेड़ों और वनस्पतियों के सभी प्रकार के बीज भी जल जाते हैं जो भविष्य में हरित आवरण को बढ़ने से रोक देते हैं।

इसके साथ ही वनों की आग से निकला धुआं भारी वायु प्रदूषण का कारण बनकर मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इससे लोगों में सांस, हृदय और प्रतिरक्षा संबंधी बीमारियां होने की संभावना भी काफी बढ़ जाती है।

जिम्मेदारियों का निर्वहन का आह्वान

उपायुक्त ने विगत वर्षों के दौरान जिले में असमय भारी बारिश, बादल फटने की घटनाएं, कम बर्फबारी के आंकड़ों के आधार पर विशेषकर युवा वर्ग से वन संपदा को सुरक्षित रखे जाने को लेकर समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन का आह्वान किया है।

उन्होंने कहा है कि वन संपदा के संरक्षण को लेकर पूर्वजों द्वारा किए गए महान कार्यों से भी प्रेरणा अवश्य ली जानी चाहिए। स्थानीय परिस्थितिकिय संतुलन को बनाए रखने के लिए देवी-देवताओं के नाम पर पूर्वजों द्वारा चिन्हित क्षेत्रों में घास के तिनके तक को घरेलू इस्तेमाल के लिए प्रतिबंधित किया जाता था।

उन्होंने यह भी कहा है कि हालांकि कोरोना महामारी से संक्रमण के मामलों में बढ़ोतरी नहीं देखी जा रही है परंतु यह भी नहीं कहा जा सकता है कि वायरस संक्रमण पूरी तरह से खत्म हो गया है इसलिए विशेषकर पहाड़ी क्षेत्रों में शुद्ध जलवायु के लिए वन संपदा को बचाए रखने की अहमियत और भी बढ़ गई है।

वन संपदा को आग न लगाएं पशुपालक

उन्होंने पशुपालकों का आह्वान किया कि वे पशुचारे के लालच में अति बहुमूल्य वन संपदा को आग न लगाएं। वनों में लगी आग पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाने के साथ हजारों प्रकार के जीव-जंतुओं को भी जला देती है।

उपायुक्त ने सभी जिला वासियों से आग्रह किया है कि वनों में आगजनी की घटना को अंजाम देने वाले लोगों की सूचना देने के लिए पुलिस, वन विभाग, अग्निशमन केंद्र या जिला आपदा प्रबंधन इकाई के टोल फ्री दूरभाष नंबर 1077 या मोबाइल फोन नंबर 98166-98166 या 01889-226950 पर संपर्क किया जा सकता है। वनों की आग से निकले धुएं से सांस, हृदय और प्रतिरक्षा संबंधी बीमारियां बढ़ीं

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