इंडिया न्यूज, धर्मशाला :
Made Aware About Crops : हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के पादप विज्ञान विभाग के वैद्य सुषेण क्लब की ओर से शाहपुर परिसर में चावल और गेहूं में रोग प्रबंधन पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
संगोष्ठी का आयोजन अधिष्ठाता, जैविक विज्ञान स्कूल और विभागाध्यक्ष, पादप विज्ञान विभाग प्रो. प्रदीप कुमार के मार्गदर्शन में किया गया।
इस संगोष्ठी में बतौर आमंत्रित वक्ता चावल एवं गेहूं शोध केंद्र मलां जिला कांगड़ा से सहायक वैज्ञानिक (प्लांट पैथोलाजी) डा. सचिन उपमन्यु ने संबोधित किया।
वहीं विशेष अतिथि कम्प्यूटेशनल बायोलाजी एवं बायो इनफॉरमेटिक्स केंद्र के निदेशक डा. महेश कुल्होरिया ने प्रतिभागियों को संबोधित किया।
संगोष्ठी में पादप विज्ञान विभाग के संकाय सदस्य, शोधार्थी और स्नातकोत्तर छात्र मौजूद रहे। संगोष्ठी का मुख्य उद्देश्य चावल और गेहूं में विभिन्न रोगों के प्रबंधन के बारे में जागरूक करना और उनसे होने वाले नुकसान को कैसे कम किया जा सकता है, रहा।
डा. सचिन उपमन्यु ने कहा कि कीट, रोग और खरपतवार एक साथ कुल फसल पैदावार का लगभग 30 प्रतिशत का नुकसान करते हैं।
उन्होंने रोग प्रबंधन के 2 बुनियादी उपायों निवारक और उपचारात्मक पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि रोग प्रबंधन में आमतौर पर 6 मापदंडों द्वारा पहचान की जाती है अर्थात बहिष्करण, बचाव, उन्मूलन, संरक्षण, प्रतिरोध और चिकित्सा।
उन्होंने विभिन्न रोग प्रबंधन रणनीतियों पर भी प्रकाश डाला जैसे बलास्ट प्रतिरोधी जींस की शुरूआत, जीन पिरामिडिंग, मार्कर असिस्टेड चयन और कल्चजरल प्रैक्टिसिज आदि।
डा. उपमन्यु ने राष्ट्रीय महत्व की फसल, फसल की अवस्था, पैथोजन आदि के आधार पर विभिन्न प्रकार के रोगों की व्याख्या की जैसे ब्लास्ट, बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट, शीथ ब्लाइट, ब्राउन स्पाट, राइस टूंग्रो और उन्होंने चावल की फाल्सब स्मतट का विस्तार से वर्णन किया जोकि उभरती हुई बीमारी है।
इसी तरह, उन्होंने ब्हीउट रस्टस, स्मट्स, करनाल बंट, लीफ ब्लाइट्स-स्पाट ब्लाच, पाउडरी मिल्ड्यू और उभरते रोगों जैसे ब्हीट ब्लास्टप जैसे विभिन्न रोगों के बारे में बताया। उन्होंने दार्जिलिंग के स्थानीय आलू वार्ट रोग के बारे में जानकारी सांझा की और खेती में प्रदर्शन के आधार पर बड़ी संख्या में रेजिस्टोंटया टोलरेंट किस्मों के बारे में भी जानकारी प्रदान की।
उन्होंने कहा कि चावल की 2 प्रतिरोधी किस्में अर्थात सांबा और स्वर्णा चावल ब्लारस्टि रोगों को रोकने के लिए लगाई जाती हैं जोकि दक्षिण-पूर्व एशिया में बहुत लोकप्रिय हैं।
उन्होंने बताया कि किसानों द्वारा खराब रोग प्रबंधन के कारणों में प्रतिरोधी किस्मों के ज्ञान की कमी, उर्वरकों का असंतुलित प्रयोग और कवक की कुछ नई नस्लों के उद्भव के कारण फसलों का अति संवेदनशील बनाना शामिल है।
अंत में डा. महेश कुल्हारिया ने अतिथि वक्ता, संकाय सदस्यों और छात्रों को धन्यवाद प्रस्ताव दिया। इस संगोष्ठी का संचालन डा. अंशुन चौधरी, सहायक प्रोफेसर द्वारा किया गया और पादप विज्ञान विभाग की शोधार्थी पुष्पा गुलेरिया, लीना ठाकुर और बिन्नी वत्स ने भाग लिया। Made Aware About Crops
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