India News(इंडिया न्यूज़) Dhram: भगवान श्री कृष्णा (krishna) के द्वारा दिए गए गीता के ज्ञान में हमारे लगभग सभी सवालों के जवाब और सभी समस्याओं के समाधान मिल जाते हैं। गीता में अर्जुन ने श्री कृष्णा से वो सभी प्रश्न किए, जिनके उत्तर संसार के लगभग सभी मनुष्य के मन में पैदा होते हैं। इसके अलावा मनुष्य की कुछ ऐसी मानसिक परेशानियां भी होती हैं जिन परेशानियों को श्री कृष्णा ने अर्जुन के सामने रखा और साथ ही उस परेशानी का समाधान भी बताया।
ऐसे ही एक परेशानी हमारे जीवन में क्रोध यानि गुस्सा करने से भी जुड़ी हैं। अक्सार कई लोगों को बात-बात में गुस्सा आ जाता हैं। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो हर वक्त चिड़चिडे या गुस्से में रहते हैं। उनके मन में शांति लगभग ना के बराबर होता हैं। गुस्सा भले ही कुछ देर के लिए हो लेकिन इसका परिणाम काफी घातक बनकर सामने आते हैं। वहीं गुस्सा का वो समय समाप्त होने के बाद गुस्से से उत्पन्न हुई समस्या पर हमें काफी पछतावा भी होता है। ऐसे में हमारे मन में ये सवाल उठता है कि आखिर हम अपने गुस्से पर नियंत्रण कैसे कर सकते है। वहीं कुछ लोग इसका समाधान निकाले बिना ही अज्ञानता से इसे अपना नेचर समझ बैठते हैं।
गीता में श्री कृष्णा ने मनोविज्ञानिक आधार से क्रोध के पीछे के कारण और उससे होने वाली गंभीर मानसिक हानि के बारे में अर्जुन को काफी उल्लेखनीयता से बताया है। भगवत गीता के 2 अध्याय के 62वें श्लोक में क्रोध के पीछे का कारण और 63वे श्लोक में इससे होने वाली गंभीर मानसिक हानि के बारे में भगवान श्री कृष्णा ने कहा हैं।
श्लोक- ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते ।
सङ्गत्सञ्जायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते ॥62॥
अर्थ- इन्द्रियों के विषयों का चिंतन करते हुए मनुष्य उनमें आसक्त हो जाता है और आसक्ति कामना की ओर ले जाती है और कामना से क्रोध उत्पन्न होता है।
श्री कृष्णा ने इस श्लोक में क्रोध आने के पीछे का कारण बताते हुए कहा है कि जब हम इस संसार में अपनी इंद्रियों के माध्यम से किसी भी चीज को देखते हैं, सुनते हैं, छूते है या फिर महसूस करते हैं। ये सभी चीजें या भौतिक वस्तु जाने- अंजाने हमारे साथ आसक्त यानि जुड़ जाती हैं। वहीं अगर कोई चीज हमसें जुड़ जाती है तो हमारे मन में उसे प्राप्त करने की कामना यानि इच्छा उत्पन्न होने लगती हैं। वहीं अगर इन कामनों या इच्छा का कोई विरोध करता है तो हमारे अंदर क्रोध का जन्म होता है। यानि जितनी हमारी कामनाएं बढ़ती है, उतना हि अधिक हमारे अंदर क्रोध पैदा होता हैं।
श्लोक- क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः।
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति ॥63॥
अर्थ- क्रोध से मनुष्य की मति मारी जाती है, वहीं मति मारी जाने पर स्मृति भ्रमित हो जाती है। स्मृति-भ्रम हो जाने से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि का नाश हो जाने पर मनुष्य खुद अपना ही का नाश कर बैठता है।
श्री कृष्णा ने इस श्लोक के द्वारा क्रोध से मनुष्य के नाश की बात कही हैं। श्री कृष्णा कहते है कि क्रोध करने से मनुष्य की मानसिक क्षमता जैसे दिन भर के निर्णय लेना और किसी बात पर तर्क लगाना आदि क्षमता खत्म होती जाती है। अगर ईश्वर के द्वारा बनाया गया सबसे बुद्धिमान जीव के अंदर ये क्षमता कम होगी तो उसका बुद्धि माया से जुड़े काल्पनिक या भ्रमित विचारों पर भागती रहेगी और भ्रमित होने से बुद्धि नष्ट हो जाती है। वहीं अगर किसी मनुष्य की बुद्धि भ्रमित है तो वो पागल से भी अधिक आगे बढ़कर जाने-आनजाने अपना ही नाश कर बैठता हैं।
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