India News(इंडिया न्यूज़), Shani Dev: शनिवार के दिन शनि देव को बोलना हिंदू ग्रंथो में बहुत शुभ माना गया है। मान्यता है कि शनि मंदिर में कभी भी शनिदेव की प्रतिमा के सीट में खड़े होकर पूजा नहीं की जाती। इसके साथ उनकी प्रतिमा को घर में स्थापित में नहीं किया जाता है। आप सूर्यपुत्र शनिदेव के बारे में जितनी जानकारी हासिल करेंगे उतनी ही उनकी कृपा आप पर बनी रहेगी। अपने दुखों से परेशानी भाग शनिवार के शाम को शनिदेव के सामने दीपक जलाकर उन्हें प्रसन्न कर सकते हैं। शनिवार को सरसों के तेल का दीपक जलाने की परंपरा काफी समय से चलती आ रही है। आपने भी कभी ना कभी शनिदेव को तेल जरूर चढ़ाया होगा।
शास्त्रों के मुताबिक शनि देव को अपनी शक्तियों और ताकत की वजह से बहुत घमंड था। उसी समय हनुमान जी की कीर्ति एवं बल की चर्चा हर जगह की जा रही थी। हर किसी के मुख पर केवल बजरंगबली के यश, कीर्ति एवं बल की तारीफ ही थी। परंतु शनि देव को हनुमान के बल यह गुणगान पसंद नहीं आ रहा था। जिस कारण उन्होंने हनुमान जी को युद्ध के लिए ललकारा था।
वहीं, जब युद्ध के लिए शनि देव हनुमान जी के पास गए थे तब वे भगवान राम की भक्ति में मग्न थे। शनि देव द्वारा हनुमान जी से युद्ध के लिए बोला गया था। हनुमान जी द्वारा शनि देव को समझाने का प्रयास किया गया। उन्होंने कहा कि वे अभी युद्ध नहीं कर सकते परंतु शनि देव ने उनकी एक न सुनी। युद्ध की बात पर अड़े रहे।
अंतत: हनुमान जी को युद्ध के लिए मानना पड़ा। जिसके बाद उनमें जमकर युद्ध हुआ। हनुमान जी द्वारा शनि देव पर बहुत तेज़ प्रहार किए गए। जिससे हनुमान जी को काफी घाव लगे। इस युद्ध में शनि देव भी बहुत बुरी तरह से घायल हुए। जिसके बाद उन्हें पीड़ा होने लगी। जिसके बाद हनुमान जी ने उनके घाव पर सरसों का तेल लगाया था। इससे शनि देव को पीड़ा में आराम मिला। वहीं, कुछ ही देर में उनके घाव पूरी तरह से भर गए और उनका दर्द भी बिल्कुल ठीक हो गया।
इस सब के बाद शनि देव का कहना था कि जो भी भक्त उन्हें सच्चे मन से पूजने के बाद सरसों का तेल अर्पित करेगा उसके सारे संकट हर लिए जाएगे। तब से आज तक शनि देव को प्रसन्न करने के लिए सरसों का तेल चढ़ाने की परंपरा चली जा रही है। उन्हें सरसों का तेल चढ़ाने से साढ़ेसाकती का भी अंत होता है।
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