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Himachal News: विश्व धरोहर कालका-शिमला रेललाइन के विरासत स्वरुप से नहीं होगी छेड़छाड़, जानिए इसके पीछे की वजह

• LAST UPDATED : August 2, 2023

India News (इंडिया न्यूज़), Himachal News: विश्व धरोहर कालका-शिमला रेललाइन का विद्युतीकरण नहीं होगा। विद्युतीकरण को लेकर उत्तर रेलवे अंबाला मंडी की ओर से तैयार करवाई गई हेरिटेज इंपेक्ट असेस्मेंट (एचआईए) रिपोर्ट में रेललाइन के विरासत स्वरूप से छेड़छाड़ न करने की हिदायत दी गई है। एचआईए रिपोर्ट में अगर विधुतीकरण को हां होती तो उसके बाद उसी रिपोर्ट के आधार पर यूनेस्को से विद्युतीकरण की मंजूरी ली जानी थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि विद्युतीकरण से लाभ कम और नुकसान अधिक होगा। कालका-शिमला के बीच गाड़ियों की गति बढ़ाने और प्रदूषण खत्म करने के मुकाबले विद्युतीकरण से दीर्घकालिक नुकसान अधिक होंगे।

120 वर्ष पुरानी इस रेल लाइन को संरक्षित करने की सलाह

ट्रैक की विरासत संरचनाओं पर नकारात्मक असर पड़ेगा। रिपोर्ट में 120 साल पुरानी इस रेल लाइन को संरक्षित करने की सलाह दी गई है। दो माह के अध्ययन के बाद तैयार की गई रिपोर्ट में हेरिटेज इमारतों, संरचनाओं, स्टेशनों और सुरंगों पर विद्युतीकरण के लिए इस्तेमाल होने वाली ओवरहेड लाइनों और उपकरणों से नुकसान का अंदेशा जताया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक प्रदूषण की समस्या का समाधान हाइड्रोजन फ्यूल तथा इलेक्ट्रिकल व्हीकल बैटरी द्वारा चलने वाली गाड़ियों का संचलन करने की सिफारिश की गई है।

कालका-शिमला रालवा सोसायटी

कालका-शिमला रेलवे सोसायटी (केएसआरएस) के आजीवन सदस्य सेवानिवृत्त इंजीनियर सुभाष चंद वर्मा ने कहा कि रिपोर्ट में विद्युतीकरण न करने का परामर्श दिया गया है। वे पहले से ही इसके खिलाफ थे। विद्युतीकरण से उन्हें भी रेललाइन के आसपास हो रहे जानवरों, पक्षियों और वनस्पतियों के नुकसान का अंदेशा हो गया था।

डीजल के मुकाबले इलेक्ट्रिक है बहतर

डीजल इंजन के मुकाबले इलेक्ट्रिक इंजन की गति और वहन क्षमता अधिक होती है। बेहतर सिगनल प्रणाली के चलते ट्रेन संचालन अधिक सुरक्षित होता है। इलेक्ट्रिक इंजन का संचालन खर्च 50 प्रतिशत तक कम है। रेललाइन के विद्युतीकरण से इलेक्ट्रिक मल्टीपल यूनिट्स के संचालन में सुविधा होती है।

2008 में बनी ये रेल लाइन भारत की पर्वतीय रेलवे विश्व धरोहर स्थल

1898 और 1903 के बीच इस रेललाइन को तैयार कीया गया था। जुलाई 2008 को यूनेस्को द्वारा इस रेल लाइन को भारत के पर्वतीय रेलवे विश्व धरोहर स्थल के रूप में माना गया था। इस रेलमार्ग में 103 सुरंगें और 869 पुल और 919 घुमाव हैं, जिनमें से सबसे तीखे मोड़ पर ट्रेन 48 डिग्री के कोण पर घूम जाती है।

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