India News (इंडिया न्यूज़), Kullu Dussehra: सन 1660 से ढालपुर में मनाए जा रहे देवी-देवताओं का देव महाकुंभ कुल्लू दशहरा देवलोक में बदल गया है। जिले के कोने-कोने से 317 देवी-देवता दर्शन देने पहुंचे हैं। वहीं 32 साल के बाद शिव परिवार एक साथ इकट्ठा हुआ है। देवता बिजली महादेव, माता पार्वती चौंग, गणेश भगवान और देव सेनापति कार्तिक स्वामी सिमसा के एक साथ दर्शन पाकर श्रद्धालु धन्य हो रहे हैं। दिव्य दर्शन करने के लिए रविवार सुबह से ही बिजली महादेव के अस्थायी शिविर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा।
शिव परिवार को एक साथ देखना लोगों के लिए किसी सपने से कम नहीं था। शिव परिवार को देख ऐसा लग रहा था मानो कैलाश में शिव परिवार एक साथ बैठा हुआ है। श्रद्धालुओं को शिव परिवार को एक साथ देखने की अनुभूति आनंदित करने वाली थी। रविवार सुबह कार्तिक स्वामी ढालपुर स्कूल स्थित अपने अस्थायी शिविर से लाव-लश्कर के साथ बिजली महादेव से देवमिलन के लिए निकल पड़े। मेला मैदान में पहुंचने पर सबसे पहले देवता कार्तिक स्वामी माता पार्वती के शिविर पहुंचे।
मां और बेटे का भव्य देवमिलन देखकर श्रद्धालु भावविभोर हो गए। इसके बाद कार्तिक स्वामी बिजली महादेव के अस्थायी शिविर में आए। यहां पर भगवान गणेश, माता पार्वती, देवता बिजली महादेव और कार्तिक स्वामी का एक साथ भव्य मिलन हुआ। देवमिलन की परंपरा का निर्वहन करने के बाद बिजली महादेव, माता पार्वती अपने दोनों पुत्रों के साथ अस्थायी शिविर में विराजे। सैकड़ों की संख्या में लोग शिव परिवार को एक साथ देखने के लिए उमड़े।
गौरतलब है कि कुल्लू दशहरा में इस बार 32 सालों के बाद सिमसा के कार्तिक स्वामी दशहरा में शामिल हुए हैं। इतने सालों से कार्तिक स्वामी दशहरा में शामिल नहीं हो रहे थे। इस बार देवता कार्तिक स्वामी दशहरा में आए तो देवता ढालपुर स्कूल स्थित अपने अस्थायी शिविर में बैठे। देवता बिजली महादेव, माता पार्वती और गणेश एक साथ मेला मैदान में ही बैठे हैं। रविवार को एक साथ शिव परिवार इकट्ठा हुआ। कार्तिक स्वामी महादेव के ज्येष्ठ पुत्र हैं। देवता कार्तिक स्वामी के पुजारी केशव राम शर्मा और कारदार युवराज ठाकुर ने कहा कि देवता कार्तिक स्वामी ने अपने पिता महादेव से देवमिलन की परंपरा को निभाया।
दशहरा में देवाधिदेव बिजली महादेव, माता पार्वती और भगवान गणेश एक साथ बैठते हैं। कार्तिक स्वामी ढालपुर स्कूल में बैठते हैं। देवलुओं के मुताबिक देवता अपनी निश्चित जगह पर ही बैठते हैं। अपने तय स्थान पर विराजमान होकर दशहरा में देव परंपरा का निर्वहन करते हैं। हालांकि देवमिलन के लिए देवता अन्य देवताओं के शिविरों में जाते हैं।
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