India News Chandigarh ( इंडिया न्यूज) Punjab News: देश पर जान निछावर करने वाले वीर शहीदों को जो लोग दो दिन में ही भूला देते हैं या फिर जो लोग इन शहीदों की शहादत को कमतर आंकते हैं। वो इस साढ़े छह साल के बच्चे कबीर की यह कुछ सेकिंड की एक छोटी सी आडियो क्लिप जरूर सुन लें तो अहसास हो जाएगा कि शहीदों की अंतिम विदाई भले ही एक दिन की हो मगर उनके परिजनों के जीवन में शहादत उम्र भर पल प्रतिपल होती रहती है। किसी पल ममता की शहादत तो किसी पल प्यार की शहादत। कभी सपने दम तोड़ते हैं तो किसी पल अरमान। साढ़े छह वर्ष का कबीर शहीद कर्नल मनप्रीत का बेटा है। 19 राष्ट्रीय राइफल यूनिट के “टाइगर ऑफ अनंतनाग” से सम्मानित कमांडिंग आफिसर कर्नल मनप्रीत 13 सितंबर 2023 को जम्मू कश्मीर में अनंतनाग के गडूल गांव में आतंकियों के ख़िलाफ़ रक्षक ऑपरेशन के दौरान शहीद हुए थे।
मगर नन्हे कबीर को नहीं पता कि उसके पिता एक ऐसे सफर पे हैं जिसमें पीछे मुड़ कर अपनों के पास आने का कोई रास्ता होता ही नहीं है। कर्नल मनप्रीत की शहादत को करीब नौ महीने बीत गए मगर नन्हा कबीर आज भी हर रोज़ अपने पापा को उसके मोबाइल पर वॉइस मैसेज भेजता है। जिसमें कबीर कहता है कि “पापा एक बार घर आ जाओ फिर मिशन पर चले जाना”। इस हकीकत से अनजान कि उसके यह मैसेज भी अब उसके वीर पिता की तरह सिर्फ जाने का रास्ता ही जानते हैं लौट के आने का नहीं। कबीर के इलावा शहीद कर्नल मनप्रीत की एक छोटी सी बिटिया भी है बाणी कौर । वाणी 28 जून को तीन साल की होगी। कबीर तो भले ही अपने पापा को रोज़ मैसेज करके उनके लौट आने का इंतजार करता है मगर वाणी को तो इतना भी पता नहीं है कि कभी कोई अपना दूर भी चला जाता है या फिर दूर गए किसी अपने का लौट आने का इंतज़ार भी कुछ होता है। कर्नल मनप्रीत क्योंकि संत कबीर के जीवन और उनकी बाणी से काफ़ी प्रभावित थे लिहाजा उन्होंने अपने दोनों बच्चों , बेटे का नाम कबीर और बेटी का नाम बाणी रखा।
मनप्रीत वर्ष 2004 में IMA SSB पास किया। वर्ष 2005 में कमीशन होकर यूनिट सिख L1 12 में लेफ्टिनेंट आफिसर के तौर पर जॉइन किया । वर्ष 2018 में उनका UN PEACE MISSION में सेलेक्शन हुआ। वर्ष 2019 में सेकेंड इन कमांड हुए। इसके बाद वर्ष 2021 में 19 RR में कमांडिंग आफिसर बने। हालांकि उनको अंडेमान में जाने का विकल्प मिला मगर देश भक्ति के जज्बे की वजह से उन्होंने अपनी सेवा 19 RR में ही जारी रखने का फैसला किया। उन्होंने सेकेंड इन कमांड के समय गैलेंट्री सेना मेडल सम्मान भी हासिल किया। कर्लन मनप्रीत 2018 से शहादत तक फील्ड सर्विस में ही थे। एक महान वीर सैनिक ही नहीं बल्कि कर्लन मनप्रीत लोकल लोगों में भी काफी चहेते बन गए थे। उन्होंने युवाओं के लिये भी काफी महत्वपूर्ण कार्य किया। पहली बार वैली में महिला क्रिकेट टूर्नामेंट का आयोजन किया जो अपने आप मे एक बड़ी चुनोती थी।
कर्लन मनप्रीत की पत्नी जगमीत कौर पंचकूला के मोरनी में एक सरकारी स्कूल में टीचर हैं। जगमीत कौर बताती हैं कि छुट्टियों में जब कभी कर्लन मनप्रीत को पत्नी के स्कूल जाने का मौका मिलता तो वो स्कूल के विधियार्थियों में भी देश भक्ति का जज़्बा भरने की कोशिश करते। बच्चों को चाइनिज चीजों का इस्तेमाल करने से मना करके देश मे बनी वस्तुओं का इस्तेमाल करने के लिये प्रेरित करते। कर्नल मनप्रीत सिंह के दादा शीतल सिंह, पिता स्व. लखमीर सिंह और चाचा रणजीत सिंह भी भारतीय सेना में थे। शहीद कर्नल मनप्रीत का परिवार मूल रूप से मोहाली ( पंजाब ) के गांव भड़ोजिया का रहने वाला है। शहादत के वक्त कर्नल मनप्रीत की उम्र 41 वर्ष थी। बहरहाल कबीर बड़ा होकर बेशक़ अपने पापा की शहादत की कहानी को समझ पाए मगर फिलहाल अपने पापा को याद करके उसका इंतज़ार करती उसकी मासूमियत दुनियां वालों को यही संदेश दे रही है कि वीर सैनिकों की शहादत एक दिन की नहीं होती बल्कि उनके परिवारों के लिये तो यह शहादतें प्रति दिन और प्रति पल की होती है। कबीर की मां के पास फ़िलहाल नन्हे कबीर के मासूम सवालों का यदि कोई वाज़िब जवाब है तो बस ये कि ” कबीर बेटा जल्दी बड़ा हो जा” क्योंकि कुछ सवालों के जवाब सिर्फ और सिर्फ वक्त के पास होते हैं जुबान के पास नहीं।
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