द्रौपदी चीरहरण के खिलाफ अकेला खड़ा था ये कौरव योद्धा
जुए में दुर्योधन और शकुनि का छल करना और पांडवों का द्रौपदी पर दांव लगाना और पांचाली को हार जाना
यहां तक तो सभी देखकर समझ रहे थे कि सब गलत हो रहा है लेकिन इसके बाद जो हुआ उसके विरोध का साहस केवल एक ही योद्धा कर सका था
जुए में हार के बाद द्रौपदी को खींचकर महल में लाना और चीरहरण करने पर पूरा कौरव वंश शांत था. लेकिन...
इसका विरोध पूरे राजमहल में केवल एक योद्धा ने किया और वह भी कौरवों के खेमे से था
विकर्ण धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों में से तीसरे नंबर पर था और चीरहरण में वह कौरवों का साथ नहीं दिया था
हालांकि कौरवों और शकुनि के आगे इस योद्धा की भी चल नहीं सकी थी. लेकिन पूरे महल में उसने ये बता दिया कि वह कौरवों के कुर्म का भागी नहीं है
हालांकि महाभारत युद्ध इस योद्धा ने कौरवों का साथ दिया था लेकिन सिर्फ इसलिए क्योंकि वह एक योद्धा था