India News (इंडिया न्यूज़), Lohri In Pakistan: 2007 में पाकिस्तान में बसंत उत्सव पर प्रतिबंध के चलते पतंग उड़ाने की खुशी खत्म हो गई। कानून और व्यवस्था के नाम पर किये गए इस फैसले को लेकर कई लोगों का मानना था कि ऐसा इसलिए किया गया क्योकि इस त्योहार की जड़ें हिंदू मिथक में थीं। हालांकि, लोग सैकड़ों वर्षों से साझा किए गए उत्सव के बिना नहीं रह सकते। जिसके चलते लोहड़ी के शीतकालीन कृषि त्योहार में पाकिस्तान पंजाब के शहरों में धीमी लेकिन स्थिर वापसी देखी गई।
लोहड़ी को पहली बार 2013 में एक इतिहासकार और पंजाबी कार्यकर्ता तोहिद अहमद चट्ठा द्वारा फैसलाबाद में मनाया गया था। चट्ठा का वंश जाट सिखों से है और उनके बुजुर्ग 1893 में ब्रिटिश शासन में नहर कालोनियों की स्थापना के साथ फैसलाबाद चले गए थे। वह कहते हैं, हम पंजाबियों को लगा कि हम अपने त्योहारों से वंचित रह गए हैं जो सैकड़ों वर्षों से धार्मिक मतभेदों के बिना एक साथ मिलकर मनाए जाते रहे हैं। इसलिए 2013 में फैसलाबाद के क्लॉक टॉवर में पहले सामुदायिक लोहड़ी उत्सव का सभी ने खुशी के साथ स्वागत किया।
धीरे-धीरे, लोहड़ी का उल्लास लाहौर, मुल्तान, कसूर और कई अन्य स्थानों पर ढोल की थाप, नाच और लोक नायक दुल्ला भट्टी की कहानी को याद करते हुए मनाया जाने लगा। दुल्ला भट्टी गरीबों का मित्र था। उसने मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल के दौरान लड़कियों को दास के रूप में बेचे जाने से बचाया था।
लाहौर के फिरोजपुर रोड पर पंजाब इंस्टीट्यूट ऑफ लैंग्वेज, आर्ट एंड कल्चर (पीआईएलएसी) में लोहड़ी त्योहार समारोह के प्रमुख उत्साही लोगों में से एक, कवि और रेडियो एंकर अफजल साहिर ने कहा था, “हम पिछले कुछ समय से यहां ढोल पर झोमर और धमाल नाचते हुए त्योहार मना रहे हैं। जब अंग्रेजों ने हमारी भाषा को उर्दू से बदल दिया तो पंजाबियों को बहुत कष्ट सहना पड़ा। हमने विभाजन का दर्द झेला, लेकिन हम अपने त्योहारों को हमसे छीनने नहीं देंगे।
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